मोदी का विरोध करना ही विपक्षी गठबंधन को भारी पड़ा
On
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिलने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को आईना दिखाया है। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को सही समय पर उचित सलाह दी है कि उसे खुद को खत्म कर लेना चाहिए। वर्षों पहले महात्मा गांधी ने भी कांग्रेस को यही सलाह दी थी। लेकिन कांग्रेस है कि मानती ही नहीं। कांग्रेस तो खत्म नहीं हुई लेकिन अब देश को खत्म करने की साजिश में जुटी है। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। जनता कांग्रेस को लगातार नकारती आ रही है। चुनावी रण में चित हो जाने के बाद उसका जोर नहीं चलता तो वह समाज को बांटने के काम में लग गई है।
कांग्रेस का एजेंडा नफरत और जहर फैलाना है, वोटों के चक्कर में कांग्रेस हिन्दुओं को बांटना चाहती है। हरियाणा इसका जीता-जागता उदाहरण है, जिस के नतीजे देश के मूड को दर्शाते हैं। हरियाणा के लोगों ने कांग्रेस को आईना दिखा दिया। कांग्रेस के पास इस समय विरोध करने का कोई मुद्दा नहीं है तो उसने अपना चुनावी फॉर्मूला 'मुसलमानों को डराओ और हिन्दुओं को बांटो' का जुमला तैयार कर लिया है। कांग्रेस मुस्लिम जातियों की बात नहीं करती क्योंकि इससे उसके वोटबैंक के बिखरने का खतरा होता है लेकिन हिन्दुओं को जातियों में बांटती है क्योंकि हिन्दुओं की एकजुटता से कांग्रेस को डर लगता है। कांग्रेस की इसी नब्ज को पकड़ते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने उस पर समाज में जहर घोलने का आरोप लगाया है। मोदी के तेवर, मोदी की आवाज और मोदी के अंदाज में एक बार फिर पुरानी खनक दिखाई दी। ऐसा लगा जैसे मोदी का आत्मविश्वास अब ऊंचाई पर है।
हरियाणा चुनाव में कांग्रेस की 'एकला चलो' रणनीति काम नहीं आई। आइ.एन.डी.आई. गठबंधन दलों को साथ लेकर चुनाव न लड़ने का फैसला गलत साबित हुआ। चुनाव परिणाम को लेकर विपक्षी आई.एन.डी.आई. गठबंधन की पार्टियां लगातार कांग्रेस पर टिप्पणी कर रही है। कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठा रहे हैं। शिवसेना (यूबीटी) और सीपीआई जैसी पार्टियों के नेताओं ने खुलकर कांग्रेस की रणनीति की आलोचना की है।
हरियाणा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता न तो कम हुई है, न देश का मूड बदला है और न ही कांग्रेस भाजपा को जीतने से रोक पाई है। लोकसभा चुनाव में सीटें कुछ कम होने से कांगेस मुगालते में थी कि भाजपा ढलान पर है।
इसी को देखते हुए उसने मुसलमानों के वोट पाने के लिए हिंदुओं को आपस में बांटने का काम शुरू किया था। ये अलग बात है कि उसका यह दांव उस पर उलटा पड़ गया। हरियाणा में भाजपा को सब वर्गों के वोट मिले और इससे भाजपा में एक नया विश्वास जागृत हुआ है और एंटी-मोदी मोर्चे का आत्मविश्वास हिल गया है। इसका असर महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तरप्रदेश और दिल्ली में देखने को मिल रहा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस लोकसभा चुनाव नतीजों के आधार पर ज्यादा सीटों पर दावा ठोंक रही थी, लेकिन हरियाणा के चुनाव नतीजों ने बाजी पलट दी। कांग्रेस की बारगेनिंग खत्म हो गई।
अब उद्धव ठाकरे इस बात का दबाव बना रहे हैं कि उन्हें महाविकास अघाड़ी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया जाए, चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जाए। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने 10 विधानसभा उपचुनावों में 6 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों का एकतरफा ऐलान कर दिया। अखिलेश यादव को ये बात तो लोकसभा चुनाव के दौरान ही समझ आ गई थी कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन का फायदा समाजवादी पार्टी को कम कांग्रेस को ज्यादा हुआ है। मध्य प्रदेश और हरियाणा में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को एक भी सीट नहीं दी।
नीतीश कुमार से लेकर अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव के इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे की मांग को नजरअंदाज करती रही. मध्य प्रदेश के चुनाव में सपा की इच्छा कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने की थी, लेकिन कांग्रेस नेता कमलनाथ अति आत्मविश्वास में थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी को साथ लेने से मना कर दिया था और अखिलेश यादव के नाम पर बड़बोलेपन वाला बयान भी दे दिया था. इसके चलते अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में आधी से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए और जमकर रैलियां की. कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में वापसी करना तो दूर छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता भी गंवा दिया।
कांग्रेस के आत्मनिर्भर बनने के चक्कर में नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन का साथ छोड़ दिया. इतना ही नहीं टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने भी खुद को विपक्षी एकता से अलग कर लिया. नीतीश कुमार और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन गए. आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भी अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था, लेकिन बाद में पंजाब को छोड़कर दिल्ली, हरियाणा सहित देश के बाकी राज्यों में गठबंधन कर लिया था. कांग्रेस ने यह 2023 के चुनाव में मात खाने के बाद लिया था. सपा के साथ भी सीट शेयरिंग पर जिद छोड़कर 17 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया
अखिलेश यादव कांग्रेस को जवाब तो देना चाहते थे, वो सही मौके के इंतजार में थे।
हरियाणा के चुनाव नतीजों ने मौका दे दिया और अखिलेश ने उसे लपक लिया। उधर, दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने ऐलान कर दिया कि विधानसभा चुनाव में कोई गठबंधन नहीं होगा। वैसे सच्चाई ये है कि अरविन्द केजरीवाल हरियाणा में कांग्रेस की मदद से पैर जमाना चाहते थे लेकिन कांग्रेस को लग रहा था कि हवा उसके पक्ष में है, इसलिए कांग्रेस ने आखिरी समय तक केजरीवाल को लटकाए रखा और ऐन मौके पर गठबंधन से इंकार कर दिया। नाराज केजरीवाल ने सभी नब्बे सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए। केजरीवाल की आप पार्टी का तो खाता भी नहीं खुला,लेकिन कांग्रेस का सता में लौटने का सपना टूट गया।अब इंडिया गठबंधन बिखराव के लिए तैयार है बस घोषणा की जरूरत है।
मनोज कुमार अग्रवाल
About The Author
Related Posts
Post Comment
आपका शहर
यह तो कानूनी प्रावधानों को घोर उल्लंघन है’, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को पलटा
20 Dec 2024 16:57:48
प्रयागराज। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक नाबालिग से बलात्कार के दो आरोपी को इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दी...
अंतर्राष्ट्रीय
बशर अल-अस्साद- 'सीरिया नहीं छोड़ना चाहता था, लड़ना चाहता था, लेकिन रूसियों ने मुझे बाहर निकालने का फैसला किया
17 Dec 2024 16:30:59
International Desk सीरिया के अपदस्थ नेता बशर असद ने कहा कि एक सप्ताह पहले सरकार के पतन के बाद देश...
Comment List