भाजपा का टेसू और देश का भविष्य

भाजपा का टेसू और देश का भविष्य

शीर्षक पढ़कर न हासिये और न भ्रमित  होइए। बात भाजपा के टेसू की ही कर रहा हूँ। टेसू एक लोक नायक है, बाद में अपने कथित अड़ियलपन कोई वजह से कहावत बन गया। आजकल हर राजनीतिक दल में एक न एक टेसू है, लेकिन इनमें भाजपा के टेसू जैसा अड़ियल टेसू किसी और दल का नहीं है।  भाजपा  'अपने  पुरषार्थ, किस्मत या जुगाड़ से तीसरी बार सत्ता में है। भाजपा की सरकार लंगड़ी है लेकिन उसका अपना टेसू जैसा पहले अड़ता था, वैसे ही आज भी अड़ा है। भाजपा आजकल किसी की परवाह नहीं करती।  न संसद की, न विपक्ष की,न अदालत की और न अपने सहयोगी दलों की।

भाजपा को परवाह है तो अपने खुले-छिपे एजेंडे की। भाजपा देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहती है इसलिए उसने पूजास्थलों की यथास्थिति को कायम रखने वाले क़ानून को बदलने का निश्चय कर लिया है ,ताकि देश में स्थित मुस्लिम समाज की छह लाख मस्जिदों और दरगाहों को खोदकर उनके नीचे दबे कथित मंदिरों को बाहर निकाला जा सके। आपको बता दें कि 'प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट ' को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अनेक जनहित याचिकाएं लंबित हैं ,लेकिन   सुप्रीम कोर्ट  चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा है कि जब तक इस मामले पर केंद्र सरकार का जवाब दाखिल नहीं हो जाता, तब तक इस पर सुनवाई नहीं होगी।

मजे की बात ये है कि कोर्ट के नोटिस के बावजूद  केंद्र सरकार ने अब तक जवाब दाखिल नहीं किया है,  सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जवाब जल्द दाखिल किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगली सुनवाई तक नई याचिका दायर की जा सकती है , उन्हें रजिस्टर भी  नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की उस मांग को ठुकरा दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश की अलग-अलग अदालतों में इससे जुड़े जो मामले चल रहे है उनकी सुनवाई पर रोक लगाई जाए। मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी 2025 को होगी। इस मामले की सुनवाई विभिन्न अदालतों में दायर कई मुकदमों की पृष्ठभूमि में होगी, जिनमें वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद से जुड़े मुकदमे शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश  संजीव खन्ना ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्ते का समय दिया और कहा कि केंद्र के जवाब दाखिल करने के बाद जिन्हें जवाब दाखिल करना हो वे 4 हफ्ते में जवाब दाखिल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम केंद्र के जवाब के बिना फैसला नहीं कर पाएंगे, और हम केंद्र सरकार का इस मामले में पक्ष जानना चाहते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने ने यह भी कहा कि विभिन्न कोर्ट जो ऐसे मामलों में सुनवाई कर रही हैं वे सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई तक कोई भी अंतिम आदेश जारी नहीं करेंगी और न ही सर्वे पर कोई आदेश देंगी।

भाजपा के मस्जिद खोदो के अघोषित अभियान में पूजास्थलों से जुड़ा मौजूदा काननों सबसे बड़ी बाधा है इसलिए भाजपा ने छद्म तरीकों से इस कानून के प्रावधानों के खिलाफ अदालत की शरण भी ली है। इस बारें में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें से एक याचिका अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। उपाध्याय ने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धाराओं 2, 3 और 4 को रद्द किए जाने का अनुरोध किया है। याचिका में दिए गए तर्कों में से एक तर्क यह है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर दोबारा दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं। भाजपा इस कानून के  मामले में  मौजूदा सीजेआई को चंद्रचूड़ बनाना चाहती है।

भाजपा जिस तरह से पूजा स्थलों के लिए बने कानून को बदलना चाहती है उसी तरह ' एक देश,एक चुनाव ' का नया क़ानून भी बनाना चाहती है ,भले ही शेष देश इसके लिए तैयार हो या न हो। समूचे विपक्ष के विरोध के बावजूद  केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'एक देश, एक चुनाव' विधेयक को मंजूरी दे दी है। इससे पहले सितंबर में कोविंद समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दी गई थी जिसमें कहा गया है कि एक साथ चुनाव की सिफारिशें को दो चरण में कार्यान्वित किया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव और दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव होंगे।

आपको याद दिला दूँ कि  माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र  दामोदर दास मोदी ने सबसे पहले 2019 में ७३ वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश एक चुनाव के अपने विचार को आगे बढ़ाया था। उन्होंने कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए। 2024 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी प्रधानमंत्री ने इस पर विचार रखा था। हालाँकि ये विचार पूर्व में ही ये देश ख़ारिज कर चुका है ,लेकिन भाजपा का टेसू इस मुद्दे पर अड़ा है सो अड़ा है।  

एक देश एक चुनाव की बहस 2018 में विधि आयोग के एक मसौदा रिपोर्ट के बाद शुरू हुई थी। उस रिपोर्ट में आर्थिक वजहों को गिनाया गया था। आयोग का कहना था कि 2014 में लोकसभा चुनावों का खर्च और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान रहा है। वहीं, साथ-साथ चुनाव होने पर यह खर्च 50:50 के अनुपात में बंट जाएगा।अपनी  ड्राफ्ट रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा था कि साल 1967 के बाद एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया बाधित हो गई। आयोग का कहना था कि आजादी के शुरुआती सालों में देश में एक पार्टी का राज था और क्षेत्रीय दल कमजोर थे। धीरे-धीरे अन्य दल मजबूत हुए कई राज्यों की सत्ता में आए। वहीं, संविधान की धारा 356 के प्रयोग ने भी एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को बाधित किया।

अब देश की राजनीति में बदलाव आ चुका है। कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की संख्या काफी बढ़ी है। वहीं, कई राज्यों में इनकी सरकार भी है। भाजपा क्षेत्रीय दलों के चक्रव्यूह को तोडना चाहती है। इस समय देश के भाजपा शासित राज्यों की संख्या लगभग 12  है शेष 17  राज्यों में या तो क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं या मिलीजुली सरकारें। भाजपा एक साथ चुनाव कराकर  पूरे देश पर अपना एक क्षत्र राज करना चाहती है। संयोग से इस समय संसद में संख्या बल का गणित भाजपा के पक्ष में है। इसलिए भाजपा न विपक्ष की परवाह कर रही है ,न संसद की और न सुप्रीम  कोर्ट की।  अब देखना है की भाजपा का टेसू कब तक अड़ा रहकर भाजपा और संघ के एजेंडे  को पूरा कर पाता है।

राकेश अचल 

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