सरकारी दक्षता विभाग: आर्थिक बचत और प्रगति की नई परिभाषा
सरकार का कुशल प्रबंधन और संसाधनों का सही उपयोग किसी भी राष्ट्र के विकास की नींव होती है। आज जब पूरी दुनिया आर्थिक अस्थिरता के दौर से गुजर रही है, तब आर्थिक स्थिरता और कुशल शासन के लिए नए विचारों और रणनीतियों की आवश्यकता और भी प्रबल हो गई है। अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में ‘DOGE (डोज़)’ (डी.ओ.जी.ई. - डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी - सरकारी दक्षता विभाग) की परिकल्पना एक ऐसी ही क्रांतिकारी सोच का परिणाम है, जिसका उद्देश्य है सरकार की कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी, कम खर्चीला और पारदर्शी बनाना। इसके तहत एलन मस्क और विवेक रामास्वामी जैसे दूरदर्शी और अनुभवी व्यक्तित्वों को शामिल करना इस बात को दर्शाता है कि इस अभियान की नींव गहरी सोच और तकनीकी दक्षता पर आधारित है।
मस्क, जो टेस्ला और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों के जरिए तकनीकी क्रांति का चेहरा बने हैं, और विवेक रामास्वामी, जो एक सफल उद्यमी और विचारक हैं, दोनों ही इस बात के प्रतीक हैं कि नवाचार और प्रबंधन का मेल किसी भी सरकारी व्यवस्था को नया आयाम दे सकता है। यह पहल न केवल अमेरिका बल्कि हर उस राष्ट्र के लिए प्रेरणा है, जो कुशल शासन और आर्थिक स्थिरता के साथ प्रगति की राह पर चलना चाहता है।डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान यह वादा किया था कि उनकी सरकार "छोटी सरकार, बड़े परिणाम" के सिद्धांत पर काम करेगी। उनके अनुसार, एक छोटी लेकिन प्रभावी सरकार न केवल खर्चों में कटौती कर सकती है, बल्कि जनता के जीवन में सकारात्मक बदलाव भी ला सकती है।
डोज़ की यह पहल अस्थायी एजेंसी के तौर पर कार्य करेगी, जिसका उद्देश्य सरकारी खर्चों का विश्लेषण करना, अनावश्यक व्यय की पहचान करना, और संसाधनों का कुशलता से प्रबंधन करना है। हालांकि इसे कानूनी अधिकार नहीं दिया गया है, लेकिन इसका लक्ष्य प्रशासन को दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करना है। यह विचार विशेष रूप से उन देशों के लिए उपयोगी हो सकता है, जहां सरकारी खर्चों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है।
भारत जैसे देश में, जहां लाखों करोड़ रुपये का वार्षिक बजट विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं में खर्च किया जाता है, डोज़ जैसा मॉडल अत्यधिक प्रासंगिक हो सकता है। सरकारी योजनाओं में अक्सर “दोहरे कार्य” का दुष्प्रभाव देखने को मिलता है, जहां एक ही प्रकार के कार्यों के लिए कई मंत्रालय और एजेंसियां काम करती हैं। यह दोहराव न केवल संसाधनों का अपव्यय करता है, बल्कि प्रशासनिक जटिलताओं को भी बढ़ाता है। अगर भारत में भी एक "सरकारी दक्षता विभाग" की स्थापना की जाए, तो यह नीतियों की समीक्षा, खर्चों की पारदर्शी रिपोर्टिंग, और अनावश्यक खर्चों को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है।
सरकारी खर्चों की समीक्षा और फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बचाई गई राशि का उपयोग जनता के कल्याण के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि भारत अपने कुल बजट का केवल 5% भी बचा ले, तो यह लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये के बराबर होगा। इतनी बड़ी राशि से गांवों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का सशक्तिकरण किया जा सकता है, नई स्कूल और अस्पतालों का निर्माण संभव है, और डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाया जा सकता है। यह पहल देश के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में विकास की गति को कई गुना तेज कर सकती है।
डोनाल्ड ट्रंप के “छोटी सरकार, बड़े परिणाम” के सिद्धांत में एक और महत्वपूर्ण संदेश छिपा हुआ है। उनका मानना है कि सरकार का कार्य नीतियां बनाना और उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होना चाहिए, न कि हर छोटे-बड़े कार्य को अपने हाथ में लेना। यदि सरकारी एजेंसियां मार्गदर्शक की भूमिका निभाएं और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दें, तो न केवल काम की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि लागत में भी कमी आएगी। यह दृष्टिकोण भारत जैसे विकासशील देश के लिए अत्यधिक उपयुक्त है, जहां आज भी करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। सरकारी खर्चों में सुधार लाने में तकनीकी दक्षता भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
डिजिटल तकनीक के माध्यम से योजनाओं की निगरानी, उनके परिणामों का आकलन, और खर्चों की हर गतिविधि का विश्लेषण किया जा सकता है। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा। अमेरिका में इसी प्रकार की तकनीकी दक्षता का उपयोग कर सरकारी परियोजनाओं की लागत में कटौती की गई है। भारत भी इसी दिशा में आगे बढ़कर अपनी सरकारी प्रणाली को आधुनिक बना सकता है।
भारत जैसे देशों के लिए, जहां संसाधनों की कमी नहीं बल्कि उनके प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता है, इस प्रकार के मॉडल से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, जनधन योजना और आधार के माध्यम से सब्सिडी का सीधा हस्तांतरण एक सफल कदम साबित हुआ है, जिसने भ्रष्टाचार को कम किया और सरकारी खर्चों को कुशल बनाया। यदि इसी प्रकार की तकनीकी दक्षता अन्य सरकारी योजनाओं में लागू की जाए, तो विकास की प्रक्रिया और अधिक तेज हो सकती है। सरकारी खर्चों की दक्षता केवल आर्थिक स्थिरता का साधन नहीं है, बल्कि यह शासन की जवाबदेही और जनता के विश्वास को भी मजबूत बनाता है।
जब नागरिक यह देखते हैं कि उनका कर (टैक्स) सही दिशा में और सही उद्देश्य के लिए उपयोग हो रहा है, तो सरकार और जनता के बीच का विश्वास और भी गहरा हो जाता है। इसके साथ ही, देश के आर्थिक ढांचे में सुधार होने से विदेशी निवेशकों का विश्वास भी बढ़ता है, जो किसी भी देश की प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है। डोनाल्ड ट्रंप की डोज़ पहल केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है। यह एक वैश्विक संदेश देती है कि सरकारें कैसे कम खर्च में अधिक प्रभावी हो सकती हैं। यह पहल भारत जैसे विकासशील देशों के लिए भी एक सबक है। आज समय की मांग है कि भारत भी "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" के सिद्धांत को अपनाए।
सरकारी खर्चों की समीक्षा, पारदर्शिता की गारंटी, और संसाधनों का कुशल प्रबंधन न केवल जनता की समस्याओं को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि देश को आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में भी योगदान देगा।
एक कुशल, पारदर्शी और जिम्मेदार प्रशासन ही विकास की असली कुंजी है। जब सरकार अपने कामकाज में "सादा जीवन, उच्च विचार" की नीति को अपनाएगी, तभी देश के विकास की गति तेज होगी। सरकारी खर्चों में सुधार का मार्ग केवल आर्थिक बचत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक नई सोच और दिशा की ओर भी मार्गदर्शन करता है। भारत को इस प्रक्रिया को अपनाकर अपने शासन तंत्र को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह, और कुशल बनाना चाहिए।
यह बदलाव न केवल वर्तमान समस्याओं का समाधान करेगा, बल्कि भविष्य के लिए मजबूत नींव भी रखेगा। कुशल प्रशासन और संसाधनों के सही उपयोग से देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और जनता के जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा। यह समय नई सोच और रणनीतियों के साथ उज्जवल भविष्य की ओर कदम बढ़ाने का है। परिवर्तन का यह दौर भारत के लिए प्रेरणादायक है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सशक्त भारत की नींव रखेगा।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (म.प्र.)
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