विश्व हिन्दू परिषद् : कल आज और कल
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तनवीर जाफ़री
इलाहबाद कभी न केवल कांग्रेस बल्कि समाजवादी व आर एस एस व विश्व हिन्दू परिषद् के भी वरिष्ठ व राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का गढ़ हुआ करता था। नेहरू-गाँधी परिवार की तो यह कर्मस्थली थी ही इसके अतिरिक्त पुरषोत्तम दस टंडन,मदन मोहन मालवीय जैसी अनेक विभूतियाँ भी इसी शहर से सम्बद्ध रहीं। इसी तरह दक्षिणपंथी विचारधारा के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख रहे राजेंद्र सिंह उर्फ़ रज्जु भैय्या का नाम भी इलाहाबाद से ही जुड़ा हुआ है।
ऐसा ही एक नाम था जस्टिस शिव नाथ काटजू का जोकि 1980 के दशक में विहिप के अध्यक्ष भी चुने गये थे । जस्टिस काटजू ने अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर के निर्माण के लिए शुरुआती अभियान चलाया था। और इसी दौरान उन्हें नज़रबंद भी कर दिया गया था। चूँकि मेरी भी औपचारिक शिक्षा इलाहाबाद में ही हुई इसलिये उस दौर के अनेक विशिष्ट जनों के साथ संबंध रखने का भी सौभाग्य मिला। जस्टिस काटजू भी उन्हीं में एक थे जिनके पास अक्सर मेरा आना जाना रहता था। जस्टिस काटजू विहिप के अध्यक्ष तो ज़रूर थे परन्तु वे पूर्णतयः धर्मनिर्पेक्ष थे। इस्लामी इतिहास का भी उन्हें ज़बरदस्त ज्ञान था। शिया -सुन्नी विवाद और करबला की घटना जैसे विषयों पर तो वे अक्सर मेरे साथ बातें किया करते और मेरा ज्ञान वर्धन किया करते थे।
बात 1977-78 की है उस दौरान मैं इलाहबाद के मुहल्ला दरियाबाद के इमामबाड़ा सलवात अली ख़ान नामक एक ट्रस्ट से परिवारिक रूप से जुड़ा हुआ था। यहाँ अनेक धार्मिक आयोजन हुआ करते हैं। इन्हीं में एक चालीसवें का जुलूस (मुहर्रम के चालीस दिन बाद ) भी इसी इमामबाड़े से निकला जाता है। इसी जगह से निकलने वाले चालीसवें के जुलूस का प्रारंभिक संबोधन करने के लिये जब मैंने जस्टिस काटजू से निवेदन किया तो वे ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गये। हालांकि उन्होंने अयोध्या में मंदिर के निर्माण के लिए शुरू हुये विहिप आंदोलन तथा दरियाबाद की घनी मुस्लिम आबादी को भी रेखांकित किया। परन्तु मेरे संपूर्ण सुरक्षा व शांतिपूर्ण आयोजन के आश्वासन के बाद वे कार्यक्रम से पूर्व स्वयं अपनी एम्बेसडर कार चलाकर बिल्कुल अकेले ही दरियाबाद पधारे।
यहाँ दरियाबाद चौराहे पर मौजूद मेरे साथियों ने उनका स्वागत किया व पूरे सम्मान के साथ उन्हें इमामबाड़ा सलवात अली ख़ान लेकर गये। यहाँ मौजूद समूह के बीच जस्टिस काटजू ने कर्बला की घटना का ज़िक्र करते हुये न केवल अपनी तरफ़ से बल्कि विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष होने की हैसियत से विहिप की तरफ़ से भी हज़रत इमाम हुसैन व करबला के शहीदों को बड़े ही भावपूर्ण शब्दों में श्रद्धांजलि अर्पित की। शेरवानी,टोपी और चूड़ीदार पैजामा जैसा परिधान प्रायः धारण करने वाले काटजू साहब सभी धर्मों का पूरा ज्ञान रखते थे तथा उन्हें सम्मान भी देते थे। वे विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष होने के बावजूद सभी धर्मों में परस्पर मेल जोल व सद्भाव के पक्षधर थे। उन्हें उर्दू आरबी फ़ारसी का भी पूरा ज्ञान था।
यह था उस दौर के विश्व हिंदू परिषद का वह चेहरा जिससे भारत का ग़ैर हिन्दू समाज कभी भयभीत नहीं होता था। उसके बाद जबसे गुजरात को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रयोगशाला कहा जाने लगा तब से इसी विश्व हिंदू परिषद ने खुलकर इस्लाम व अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी आक्रामकता दिखानी शुरू कर दी। इसी विश्व हिंदू परिषद में बजरंग दल नामक एक और संगठन तैयार हो गया जो समय समय पर आक्रामक होते नज़र आया। आज पूरे देश में विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल पर अनेक आपराधिक मुक़ददमे चल रहे हैं। इसी विश्व हिंदू परिषद ने योजनाबद्ध तरीक़े से गुजरात से शुरू कर कॉरोनकाल के दौरान देश के कई राज्यों में मुस्लिम दुकानदारों के प्रति नफ़रत फैलाकर उनसे सब्ज़ी फल व अन्य सामान ख़रीदने के लिये हिन्दू समाज के लोगों को मना किया।
सीधे शब्दों में मुस्लिमों का व्यवसायिक बहिष्कार करने की कोशिश की गयी। इसी विहिप ने 'बेटी बचाओ बहू लाओ' नामक एक अभियान भी चलाया जिसके अंतर्गत किसी हिन्दू लड़की के मुस्लिम लड़के से प्रेम संबंध होने की स्थिति में उस रिश्ते में दख़ल देना तथा वह अंतर्धार्मिक सम्बन्ध परवान न चढ़ने देना है। जबकि साथ ही हिन्दू लड़कों को इस बात के लिये आमादा करना है कि वे मुस्लिम लड़कियों से दोस्ती कर उनको बहू बनाकर लाएं। गुजरात सहित और भी कई राज्यों से ऐसी ख़बरें भी आती रही हैं जबकि विहिप के लोगों ने किसी मुस्लिम को किराये पर मकान देने का विरोध किया तो कभी ख़रीदे हुये फ़्लैट में भी क़ब्ज़ा लेने व उनके रहने का विरोध किया। कई जगहों पर विश्व हिंदू परिषद के लोग मुस्लिमों की मॉब लिंचिंग करने वालों का साथ देते यहाँ तक कि उनके समर्थन में सड़कों पर उतरते,उग्र होते व हत्यारों को सम्मानित करते नज़र आये।
आज का विश्व हिंदू परिषद तो पूरी तरह से अपने उन बुनियादी सिद्धांतों से दूर होता नज़र आ रहा है जिसे लेकर हिंदू राष्ट्रवाद पर आधारित इस भारतीय दक्षिणपंथी हिंदू संगठन की स्थापना 1964 में की गयी थी। उस समय इसका घोषित उद्देश्य "हिंदू समाज को संगठित व मज़बूत करना और हिंदू धर्म की सेवा और सुरक्षा करना" था न कि किसी अन्य धर्म के विरुद्ध आक्रामक होना या भारतीय लोगों में अफ़वाहबाज़ी के द्वारा नफ़रत हिंसा व विद्वेष भड़काना और किसी भारतीय नागरिक को दूसरे दर्जे का नागरिक समझना। न ही किसी की मस्जिद मज़ार गिराना व अन्य धर्मों की ध्वजा उतारकर अपनी धर्मध्वजा लहराना। न ही इस तरह के अभियान चलाना । परन्तु इससे भी आगे बढ़कर आज का विश्व हिन्दू परिषद तो गोया संविधान विरोधी संवाद को भी हवा देने वाला एक मंच बन चुका है। इनदिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव द्वारा दिया गया एक 'असंवैधानिक भाषण ' जो कि गत 8 दिसम्बर को इलाहाबाद हाई कोर्ट के लाइब्रेरी हॉल में वीएचपी के विधि प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान दिया गया था
वह न केवल चर्चा में है बल्कि उसी भाषण को लेकर जस्टिस शेखर यादव के विरुद्ध महाभियोग चलाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है। वीएचपी के लीगल सेल के इसी आयोजन में जस्टिस शेखर यादव ने 'समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता' विषय पर बोलते हुए कहा था कि देश एक है, संविधान एक है तो क़ानून एक क्यों नहीं है? उन्होंने इसी मंच पर यह भी कहा कि "हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा, यही क़ानून है। आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं। क़ानून तो भैय्या बहुसंख्यक से ही चलता है। " जस्टिस यादव के इस बयान के फ़ौरन बाद ही कई नेताओं, वकीलों,पूर्व न्यायाधीशों व बुद्धिजीवियों द्वारा उनके इस बयान की निंदा की गयी उसे असंवैधानिक बताया गया और आख़िरकार मामला महाभियोग तक आ पहुंचा। उनके विरुद्ध राज्यसभा के 55 सांसदों ने महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिये राज्य सभा में नोटिस दे दिया। यह भी सवाल उठने लगा कि एक वर्तमान न्यायाधीश का ऐसे कार्यक्रम में शामिल होना उचित भी है अथवा नहीं ?
सवाल यह है कि आजका विश्व हिन्दू परिषद् जब संविधान विरोधी वक्तव्यों को अपने मंच से बढ़ावा दे रहा है,धर्म विशेष के विरोध में ही स्वयं को पनपते देख रहा है, हिंदू समाज को संगठित करने उसे मज़बूत करने व हिंदू धर्म की सेवा व सुरक्षा के बहाने समाज में नफ़रत व हिंसा को बढ़ावा देते देते अब संविधान विरोधी विचारों को भी मंच प्रदान कर रहा है, आने वाले कल में वही विश्व हिन्दू परिषद् शिव नाथ काटजू जैसे परिषद् के पूर्व नेताओं के विचारों व उनके स्वभाव व आचरण से कितनी दूर जायेगा और देश को किस स्थिति में ले जायेगा इसका अंदाज़ा लगाने के लिये किसी और की बातें सुनने की ज़रुरत नहीं बल्कि ख़ुद शिव नाथ काटजू के होनहार पुत्र व पूर्व जस्टिस मारकंडे काटजू के संघ सम्बन्धी विचारों को सुनकर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
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