सुलतानपुर फर्जी खतौनी निरस्तीकरण: जिला प्रशासन पर कार्रवाई का उत्तर दायित्व बढ़ा

सुलतानपुर फर्जी खतौनी निरस्तीकरण: जिला प्रशासन पर कार्रवाई का उत्तर दायित्व बढ़ा

रिपोर्ट - सत्यप्रकाश पाठक 
सुलतानपुर।
 
तहसील सदर के ग्राम करौंदिया में फर्जी खतौनी निरस्तीकरण का मामला अब प्रशासनिक सुधारों की दिशा में एक नई बहस को जन्म दे रहा है। जहां एसडीएम सदर विपिन द्विवेदी के आदेश ने वादी को राहत दी, वहीं यह मामला जिले के भूमि प्रबंधन और प्रशासनिक कार्यप्रणाली में व्याप्त खामियों की ओर इशारा करता है।
 

प्रशासन पर जनता का बढ़ता दबाव

 
वादी और स्थानीय लोगों का कहना है कि तहसील कर्मियों की मिलीभगत के बिना ऐसी गड़बड़ी संभव नहीं। ऐसे में जनता अब दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग कर रही है। सामाजिक संगठनों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी इस मामले को लेकर जिलाधिकारी से स्पष्ट कार्रवाई करने की अपील की है।
 

अन्य फर्जी मामलों की जांच की मांग

 
यह प्रकरण सामने आने के बाद जिले के अन्य भूमि विवादों पर भी सवाल उठने लगे हैं। कई ग्रामीणों ने दावा किया है कि ऐसी फर्जी खतौनी और दस्तावेज़ के मामलों की संख्या अधिक हो सकती है, जो अभी तक दबे हुए हैं। स्थानीय वकील अमित सिंह का कहना है, "यह घटना केवल एक उदाहरण है। यदि व्यापक जांच की जाए तो और भी कई मामले उजागर हो सकते हैं।"
 

आईजीआरएस पोर्टल की कार्यप्रणाली पर सवाल

 
आईजीआरएस पोर्टल पर शिकायत के गलत निस्तारण ने भी प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल खड़े किए हैं। स्थानीय एक्टिविस्ट शरद त्रिपाठी ने कहा, "आईजीआरएस जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जनता को न्याय मिलने की उम्मीद होती है। लेकिन यदि ऐसी शिकायतें दबा दी जाएं, तो यह सिस्टम की विश्वसनीयता को कमजोर करता है।"
 

दोषियों पर कार्रवाई की उम्मीद

 
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, इस प्रकरण में दोषी कर्मचारियों पर विभागीय जांच शुरू हो सकती है। जिलाधिकारी से अपेक्षा है कि दोषियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया जाए। भूमि रिकॉर्ड के प्रबंधन में सुधार के लिए कड़े दिशानिर्देश जारी किए जाएं। फर्जी खतौनी और भूमि विवादों के मामलों की जिला स्तरीय समीक्षा की जाए।
 
 

जिम्मेदार प्रशासन की जरूरत

 
एसडीएम सदर द्वारा दिखाए गए न्यायिक हस्तक्षेप ने जनता को आश्वस्त किया है कि ईमानदार और जवाबदेह अधिकारी प्रशासन में सुधार ला सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस घटना को एक उदाहरण बनाकर सही कदम उठाए गए, तो यह जिले के भूमि प्रबंधन को पारदर्शी और भरोसेमंद बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
 

निष्कर्ष:

 
यह मामला न केवल वादी के लिए राहत का कारण बना है, बल्कि प्रशासनिक तंत्र के लिए एक चेतावनी भी है। अब देखना होगा कि जिलाधिकारी और संबंधित विभाग इस प्रकरण को किस तरह से संभालते हैं और जनता के विश्वास को कैसे बहाल करते हैं।

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