आनलाइन हाजिरी : शिक्षक लामबंद और सरकार दृढ़ 

आनलाइन हाजिरी : शिक्षक लामबंद और सरकार दृढ़ 

हर चीज के दो पहलू होते हैं और हम एक पहलू पर अपना निर्णय नहीं रख सकते। आज उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक सरकार के आनलाइन हाजिरी लगाने के नियम का विरोध कर रहे हैं। इसमें लोगों की भी अपनी अलग-अलग राय हैं कोई इसको सही मान रहा है और कोई ग़लत। आखिरकार सरकार को इस की जरूरत क्यों महसूस हुई पहले हमें इस पहलू पर विचार करना होगा। शिक्षा का स्थान हर जगह सर्वोपरि होता है। और समाज में भी शिक्षकों को उच्च स्थान दिया गया है। शिक्षक ही हैं जो हमारे देश का भविष्य तैयार करते हैं। लेकिन काफी समय से सरकार को यह रिपोर्ट मिल रही थी और समाचारों में भी ऐसी खबरें प्रकाशित हो रहीं थीं कि बड़ी संख्या में शिक्षक स्कूल आते ही नहीं हैं और वह अपना एक ऐसा सहयोगी रखते हैं जो कुछ पैसों के लिए वह स्कूल जाकर बच्चों को जो कुछ भी पढ़ाकर दिनचर्या पूरी कर लेता है। ऐसा हर शिक्षक के लिए लागू नहीं है।
 
यह दूर दराज के स्कूलों में पाया गया था। जो नगरीय क्षेत्र से काफी दूर होते हैं और अधिकारियों को भी उन कठिन रास्तों पर निरीक्षण के लिए जाने में एक बार सोचना पड़ता है। सरकार का मत है तो शिक्षा के मंदिर में यदि आनलाइन हाजिरी को लागू कर दिया जाए तो सरकारी विद्यालयों में बहुत कुछ सुधार हो सकता है। शिक्षकों की काबिलियत पर तो हम प्रश्न नहीं उठा सकते क्योंकि वह कई स्तर के प्रशिक्षण के बाद ही यहां तक पहुंचते हैं। लेकिन उनकी उपस्थिति को लेकर सवाल बहुत पहले से उठते रहे हैं। इसलिए सरकार को यह आवश्यकता महसूस हुई कि यदि इस तरह की हाजिरी को लागू कर दिया जाता है तो प्रत्येक शिक्षक समय से विधायक आएगा और बच्चों को पढ़ाएगा। वैसे भी सरकारी स्कूलों में समाज की अंतिम पंक्ति के बच्चे ही सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं और सरकार इन बच्चों की पढ़ाई के लिए अपने बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा रखती है।
 
यदि पूर्व में शिक्षकों की उपस्थिति, अनुपस्थिति के मामले नहीं आते तो यह नौबत ही नहीं आती। देश में जो भी हालत चल रहे होते हैं। वह सरकार की निगाह में सब कुछ होता है और तभी उसे कड़े नियम बनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। अब यह शिक्षकों के ऊपर निर्भर है कि वह इसको मानें या विरोध करें। लेकिन सरकार ने अपना निर्णय रख दिया है। शिक्षकों के लिए जो डिजिटल अटेंडेंस का नियम बनाया गया है यह कोई नई बात नहीं है। तमाम सरकारी कार्यालयों में यह व्यवस्था पहले से लागू है।
             
अब हम बात करते हैं इसके दूसरे पहल इसमें आता है शिक्षकों का आनलाइन हाजिरी के लिए विरोध। शिक्षकों का विरोध इसलिए है कि बहुत से सरकारी स्कूल ऐसी जगहों पर हैं वहां पहुंचने के रास्ते इतने खराब हैं कि तमाम आवागमन के माध्यमों को बदलकर उन्हें वहां पहुंचना होता है और वह कभी कभी देर से भी पहुंच पाते हैं। दूसरी बात आती है नेटवर्क कनेक्टिविटी की बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहां नेटवर्क कनेक्टिविटी बहुत ही खराब है। और तमाम बार प्रयास करने के बाद भी हाज़िरी नहीं लग पाती है। और हाज़िरी का समय भी निकल जाता है। और यदि शिक्षक इसी प्रयास में लगे रहेंगे तो वह बच्चों को कब पढ़ाएंगे। लेकिन ऐसा हर क्षेत्र के लिए लागू नहीं है।
 
ऐसे क्षेत्र आज के समय में बहुत कम हैं जहां आवागमन की समस्या हो और नेटवर्क कनेक्टिविटी खराब हो यदि ऐसी कोई समस्या आती भी है तो इसकी सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी जा सकती है। जैसा कि अन्य विभागों में भी होता है। दूसरी बात शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने शिक्षा के साथ साथ सरकारी स्कूलों के शिक्षकों पर अन्य इतने काम के बोझ लाद दिए हैं कि वह उसी से परेशान रहता है। और ऊपर से यह आनलाइन हाजिरी का सरदर्द उन्हें अंदर से कचोटता रहेगा तो वह बच्चों को कैसे पढ़ा पाएंगे। वास्तव में यदि देखा जाए तो सरकार के जितने भी अभियान बीच बीच में चलते रहते हैं वह सब शिक्षकों के ऊपर ही डाल दिये गये हैं। जैसे कि वोटर आईडी, वोटर लिस्ट, और तमाम स्वास्थ्य संबंधी अभियान जो बीच-बीच में चलते रहते हैं यह सभी कार्य शिक्षक ही सम्हालते हैं। और उससे शिक्षण कार्य पिछड़ता है।
 
 यदि हम समाज के अन्य लोगों का तर्क इस विषय पर रखें तो उनमें बहुत सी भिन्नताएं हैं। कुछ लोगों का कहना है कि प्राइवेट विद्यालयों में जिस तरह से शिक्षण कार्य लिया जाता है सरकारी शिक्षक उसकी आधी मेहनत भी नहीं करते हैं। और कोई भी व्यक्ति जो जरा भी सक्षम है सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहता है यहां तक कि शिक्षक स्वयं भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना पसंद नहीं करता है। क्यों कि समाज में शिक्षा भी कई भागों में बंट गई है। प्राइवेट स्कूल भी तमाम श्रेणी के हैं। जिस व्यक्ति की जितनी सामर्थ है वह उसी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ा पाता है। और यह कोई विषय भी नहीं है कि कौन किस स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाता है। सरकार ने जो शिक्षा की व्यवस्था बनाई है वह इसीलिए  बनाई है कि पैसे वाला तो अपने बच्चों को कहीं भी पढ़ा सकता है लेकिन समाज के इन अंतिम पंक्ति के अभिभावकों के बच्चे कहां जाएं जो इतना पैसा खर्च नहीं कर सकते कि वह अपने बच्चों को किसी निजी विद्यालयों में पढ़ा सकें।
 
लेकिन इसी समाज के तमाम लोगों का तर्क यह भी है कि प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों को वास्तव में शिक्षा के अलावा भी ऐसे बहुत से कार्यों के तले बांध दिया गया है कि वह मानसिक रूप से तनाव में रहते हैं। और शिक्षा के अलावा अन्य जो काम उनपर लादे गए हैं वह बहुत ही पेचीदे हैं।‌ एक एक घर में जाकर उन कार्यों को करना पड़ता है। यहां तक कि वह रविवार को भी सरकारी कार्यों में लिप्त रहता है। और ये सरकारी शिक्षक अपनी पीड़ा भी नहीं बता सकते क्योंकि सरकारी तनख्वाह पाते हैं। लेकिन समस्या कोई भी हो हर समस्या का हल निकाला जा सकता है। यदि आप आनलाइन हाजिरी की बात कर रहे हैं तो आपको अन्य कार्यों से भी शिक्षकों को मुक्त करना होगा।
 
 उत्तर प्रदेश में माध्यमिक के राजकीय व अशासकीय विद्यालयों में पूर्व से ही यह व्यवस्था लागू है। वहां पर बायोमेट्रिक हाजिरी की व्यवस्था चल रही है। इसमें अंगूठा लगाते ही हाजिरी हो जाती है पर इसके आधार पर इसके आधार पर वेतन बिल नहीं बनता था। अब नई व्यवस्था में वेतन बिल के साथ बायोमेट्रिक हाजिरी का विवरण भी जायेगा और इससे मिलान के बाद ही वेतन मिल मिल सकेगा। शिक्षक, शिक्षा मित्र, अनुदेशक व कर्मचारी संयुक्त मोर्चा में अटेवा, माध्यमिक शिक्षक संघ, माध्यमिक शिक्षणेत्तर एसोसिएशन, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद, आईटीआई कर्मचारी संघ, सीनियर बेसिक शिक्षक संघ, अखिल भारतीय उर्दू शिक्षक संघ, आदर्श माध्यमिक शिक्षक संघ समेत तमाम संगठन साथ आ गये हैं।
 
और इसका विरोध कर रहे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश माध्यमिक विद्यालय प्रबंधक महासभा के प्रदेश अध्यक्ष केदारनाथ गुप्ता व प्रदेश महामंत्री सुरेंद्र नाथ पांडेय ने राजकीय व अशासकीय विद्यालयों में बायोमैट्रिक हाजिरी का समर्थन किया है। उनका मानना है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा। अब देखना यह है कि शिक्षक संघ कब तक अपनी इन मांगों को उठाते रहेंगे और क्या सरकार इस पर कुछ रियायत देगी या दृढ़ रहेगी। फिलहाल इस व्यवस्था का जमकर विरोध किया जा रहा है और आगे आने वाले समय में इसके वृहद रूप में होने की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। परंतु सरकार ने भी जो कदम उठाया है वह काफी सोच समझ कर ही उठाया होगा। 
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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