टूट सकती है भारत के सब्र की सीमा आग से खेल रहा पाकिस्तान

टूट सकती है भारत के सब्र की सीमा आग से खेल रहा पाकिस्तान

जम्मू में कुछ सालों से शांति मानी जा रही थी. यहां छोटी घटनाओं के अलावा कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ था. लेकिन साल 2023 से यह घटनाएं बढ़ गईं और 43 आतंकी हमले हुए, जिनमें 16 से ज्यादा जवान शहीद हो गए थे. अगर पिछले 3 साल की बात करें तो 43 जवान शहीद और 23 से ज्यादा नागरिक मारे गए. ये आंकड़ें बताते हैं कि किस तरह आतंकवाद जम्मू में अपने पैर पसार रहा है.जम्मू में पिछले कुछ महीने में 9-10 आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें सबसे बड़ा हमला 9 जून को रियासी में हुआ था, जहां तीर्थयात्रियों से भरी एक बस को आतंकियों ने निशाना बनाया था. जिसमें 9 लोगों को मौत हो गई थी. फिर 8 जुलाई को दहशतगर्दों ने घात लगाकर सेना के काफिले पर हमला किया, जिसमें 5 जवान शहीद हो गए थे. अपैल 2024 से अब तक आतंकियों के हमले में 24 से ज्यादा लोग अपनी जाआतंकन गंवा चुके हैं. इनमें जवान भी शामिल हैं। 
जानकारों का मानना है कि बीते कुछ सालों में ऑपरेशन 'ऑल आउट' के तहत सेना ने कश्मीर में आतंकियों की कमर तोड़कर रख दी. इस दौरान भारी तादाद में आतंकी और उनके सरगना मारे गए. घाटी में लगभग हर बड़े नेटवर्क का सफाया कर दिया गया. सेना ने नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ पर काफी हद तक रोक लगा दी. ऐसे में आतंक के आकाओं ने अपनी रणनीति और पेटर्न को बदलते हुए जम्मू में निशाना बना रहे हैं। 
 
आपको पता है कि पिछले कुछ महीने से जम्मू में लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं. माना जा रहा है कि कश्मीर में मुंह की खाने के बाद आतंकियों ने नई स्ट्रैटेजी और पैटर्न के तहत जम्मू को हमले का नया ठिकाना बना लिया है. क्योंकि जम्मू क्षेत्र में पहाड़ी गुफा व जंगल का बड़ा क्षेत्र आतंकियों के छिपने के लिए काफी सुरक्षित साबित हो रहा है। गौर तलब है कि जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जे ने यहां अलगावादी ताकतों को सिर उठाने का मौका दिया और आजाद कश्मीर की मांग ये ताकतें लगातार पिछले 70 साल से करते रहे हैं , जिसे पड़ोसी देश पाकिस्तान का खुला समर्थन हासिल है चरमपंथियों के हाथों में सत्ता शासित पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश का जाल बुनता रहा है। 
 
दरअसल 1971 के युद्ध ने पाकिस्तान को गहरी हताशा हाथ लगी बंग्लादेश के अलग अस्तित्व में आने से जख्मी पाकिस्तान फन कुचले सांप जैसा हो गया , इसलिए उसने भारत के खिलाफ साजिश की शुरुआत की और अलगावादियों को शह देना शुरू कर दिया. 1990 के दशक में आतंकवादी घाटी में अत्यधिक सक्रिय हो गए और भारत सरकार के सामने चुनौती बनकर खड़े हो गए. इंटरनेशनल जिहाद के नाम पर भी जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया गया। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की स्थिति आर्टिकल  370 हटने के बाद बिलकुल अलग है। आतंकवाद खत्म नहीं हुआ है, तो आतंकी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हमले कर रहे हैं. वे यह नहीं चाहते हैं कि प्रदेश में शांति हो और जम्मू-कश्मीर शांति के साथ भारत का अंग रहे।
 
अलगाववादियों ने कश्मीर से गैर मुसलमानों को खदेड़ा जिसकी वजह से लगभग तीन लाख हिन्दुओं ने कश्मीर छोड़ दिया. इसके पहले कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम लागू कर दिया. इसके लागू होने से सेना को विशेष शक्तियां प्राप्त हो गईं. जिसके तहत वे संबंधित क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए कई निर्णय ले सकते हैं, जिसमें आतंकियों की तलाश करना और गोली मारना भी शामिल था.लेकिन अफस्पा के लागू होने बाद कश्मीरी पंडितों पर हमले बढ़ गया और उन्हें अपना घर-बार छोड़कर रिफ्यूजी बनना पड़ा। बंगलादेश के मुक्ति के बाद पाकिस्तान की मंशा हमेशा यह रही कि वह जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग कर हिसाब चुकता कर दे, जबकि भारत ने हमेशा ही जम्मू-कश्मीर कोइ अपना अभिन्न अंग मानकर इसके विकास और शांति के लिए ऐडी से चोटी का जोर लगाया है।  यही वजह है कि जब भी पाकिस्तान ने विदेशी मंचों पर जम्मू-कश्मीर का मसला उठाने की कोशिश की, भारत ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया। 
 
आपको बता दें कि पाकिस्तान ने  1965 और 1971 के सीधे युद्ध के बाद यह समझ लिया  कि वह प्रत्यक्ष युद्ध में भारत को नहीं हरा सकता , तो उसने अप्रत्यक्ष युद्ध लड़ा और सीमा पार से आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी और हथियार भी दिए, ताकि भारत अपने ही लोगों से युद्ध करता रहे।2014 में देश में राष्ट्रवादी विचारों वाले भाजपा नीत एनडीए की सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए सार्थक प्रयास किया। और कश्मीर से धारा 370 हटा कर जम्मू-कश्मीर को लेकर अपनी प्राथमिकता का विश्व को संदेश दिया। 2024 के लोकसभा चुनाव के समय से आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं, जो यह साफ बताती हैं कि आतंकवादियों की मंशा क्या है.दरअसल आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होना है।
 
आतंकी ताकतें चुनाव को बाधित करना चाहते हैं. वे यह नहीं चाहते कि जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण मतदान हो. आर्टिकल  370 हटाए जाने के बाद सरकार गांव-गांव तक पहुंची है, कम्यूनिकेशन बढ़ा है, जिसकी वजह से सेना हर जगह पहुंच रही है और सरकार भी पहुंच रही है. लोगों को रोजगार मिल  रहा है. स्कूलों में छात्र लौटे हैं. मस्जिदों से देश विरोधी नारे नहीं लग रहे और ना ही हुर्रियत देश विरोधी नारों और गतिविधियों के साथ सड़क पर उतर रहा है. सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कस दी है. जो पुलिस उनकी सुरक्षा में थी वे आज उनकी निगरानी कर रही है.एक और बड़ी बात है, जो आतंकवादियों को बहुुत अखर रही हैं. आर्टिकल 370 के हटाए जाने के बाद सरकार ने कश्मीरी पंडितों को उनके घरों में फिर से बसाया जा रहा है और उन्हें नौकरी दी है, अभी इस दिशा में काम कम हुआ है, लेकिन सरकार प्रयासरत है, इस बात से आतंकी नाराज हैं और इस प्रक्रिया को रोकना चाहते हैं, इस वजह से भी वे जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. वे लोगों को डरा रहे हैं। 
 
जम्मू-कश्मीर के 370 के तहत विशेष दर्जे को हमेशा चुनौती दी गई क्योंकि यहां अपना संविधान, झंडा की व्यवस्था भी थी.  यहां भूमि कानून भी अलग था जिसके तहत कोई भारतवादी यहां जमीन नहीं खरीद सकता था. नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटा दिया गया और जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर उसे तीन हिस्सों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. आर्टिकल 370 को हटाने का मुख्य उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों के समान हैसियत देना और यहां से आतंकवाद मिटाना था. आर्टिकल  370 हटने के पांच साल बाद घाटी में हालात काफी बदले हैं, लेकिन आतंकवाद पूरी तरह समाप्त हो गया, यह कहना अभी सही नहीं होगा , क्योंकि आतंकी घटनाएं होती रहती हैं।
 
जानकारी के अनुसार अंडर ग्राउंड वर्कर की वजह से आतंकियों को सपोर्ट मिल रहा है. माना जा रहा है कि जम्मू के कई इलाकों में अंडर ग्राउंड व ओवर ग्राउंड वर्कर, स्लिपर सेल की संख्या बढ़ी है. जिससे दहशतगर्दों को सेना और सिविलियन को टारगेट करने में मदद मिल रही है. स्लिपर सेल की मदद से उन्हें सुरक्षबलों के हर मूवमेंट की खबर मिल रही है. जिससे वो हमला करने में कामयाब हो रहे हैं। वहीं अफगानिस्तान से वापल लौटी अमेरिका के सैन्य कर्मी काफी तादाद में हथियार वहीं छोड़ गए पाकिस्तान के जरिए ये अमेरिकी फौज के कुछ हथियार भारत में हिंसा फैलाने के लिए दहशतगर्दों को पहुंचाए गए हैं। जिस कारण आतंकियों का हौसला कुछ बढ़ गया है लेकिन भारत सरकार आतंक को नेस्तनाबूद करने के लिए दृढ़ संकल्प लिए है और जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद का नामोनिशान मिटा कर रहेगी।
मनोज कुमार अग्रवाल 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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