हिंदी की बैसाखी से बढ़ता वैश्विक उपभोक्ता बाजार ।

हिंदी बनी अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक भाषा। 

हिंदी की बैसाखी से बढ़ता वैश्विक उपभोक्ता बाजार ।

भारत की जनसंख्या 141 करोड़ हो चुकी है। देश के लिए जरूर यह समस्या के रूप में देखी जा सकती है पर अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिए यह एक बड़े बाजार का खजाना ही साबित हो रही है । भारत अब एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता बाजार बन चुका है। भारत में न जाने कितनी अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक संस्थाएं अपने उत्पाद बेचने के लिए आतुर रहती हैं और यही एक बड़ा कारण है कि उन्हें अपने विज्ञापन तथा माल बेचने के लिए भारतीय उपभोक्ताओं को आकर्षित करने हिंदी में विज्ञापन में बेची जाने वाली वस्तुओं की समस्त जानकारी रखनी होती हैं ।यह उनकी व्यावसायिक मजबूरी ही है कि भारत तथा विदेशों में रहने वाले तमाम हिंदुस्तानियों के लिए हिंदी भाषा के माध्यम से प्रचार प्रसार तथा विज्ञापन करती रहें तब जाकर उनका निर्मित उत्पाद विक्रय के लिए बाजार में आ सकेगा।
 
वर्तमान में हिंदी को वैश्विक स्तर पर उपभोक्तावाद से जोड़ा गया है। और बीच-बीच में हिंदी के मध्य उर्दू और अंग्रेजी ने अपनी जगह बनाई है। आज स्थिति यह है कि हिंदुस्तान में ही हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी के कई शब्द मिलाकर हिग्लिश भाषा बोली जाती है। न्यूज़ चैनल में न्यूज़ एंकर विशुद्ध हिंदी की जगह हिग्लिश ही बोलकर अपनी इतिश्री कर लेते हैं। और तो और अब हिंदी के बड़े साहित्यकार भी हिंदी में अंग्रेजी तथा उर्दू के शब्द मिलाकर लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, और पढ़ रहे हैं। विडंबना यह है कि भारत में 141 करोड़ उपभोक्ता की उपस्थिति में विशुद्ध हिंदी का प्रयोग करना थोड़ा कठिन हो जाता है।जैसे हम टी,वी, को दूरदर्शन नहीं कहते, इंटरनेट को इंटरनेट ही लिखा जाता है, अंतरजाल नहीं लिखा जाता ।यह जितनी अंग्रेजी की शब्दावली हिंदी में जुड़ी हुई है,यह संचार माध्यम टी,वी व्हाट्सएप,फेसबुक,ट्विटर, इंटरनेट सीधे-सीधे उपभोक्ताओं के बाजार वाद के कारण जुड़े हुए हैं। हिंदुस्तान में लगभग 141 करोड़ उपभोक्ता निवास करते हैं, और उन तक पहुंचने के लिए हिंदी का प्रयोग अंग्रेजी तथा उर्दू की मिलावट के साथ किया जाता है। वैश्विक स्तर पर भी देखा जाए तो हिंदुस्तानी मूल के लोग श्रीलंका,मॉरीशस,फिजी, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा,ऑस्ट्रेलिया,न्यू जीलैंड, साउथ अफ्रीका में फैले हुए हैं।
 
ऐसे में हिंदी का वैश्विक विस्तार अपने आप हिंदी भारतीय अप्रवासी, प्रवासी भारतीय लोगों के माध्यम से होने लगता है।फिर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रॉस, इटली, जापान,चाइना इनके उत्पादक को भारत के उपभोक्ताओं के बीच बेचने के लिए उन्हें हिंदी की आवश्यकता होती है, भारत एक शक्तिशाली उपभोक्ता बाजार है। एक साथ एक ही जगह इतने ग्राहक मिलना किसी अन्य देश में असंभव है। इन परिस्थितियों में विश्व का हर देश अपने बनाए गए उत्पादन का बाजार खोजने भारत की ओर खिंचा चलाआता है। और हिंदी को माध्यम बनाकर वह अपना माल बेचना शुरू करता है। और इसके लिए टी,वी, इंटरनेट, कंप्यूटर,व्हाट्सएप तथा फेसबुक में हिंदी में विज्ञापन देकर उसका प्रचार प्रसार करता है। विज्ञापनों में हिंदी का व्यापक रूप से प्रचार और प्रसार वैश्विक स्तर पर होने लगा है।
 
डॉक्टर जयंती प्रसाद नौटियाल ने भाषा शोध अध्ययन 2012 में यह दावा किया है कि विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है। हिंदी में अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं का उपयोग करने वालों को पीछे छोड़ दिया है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाए जाने का निर्णय लिया था। इसी तारतम्य में भारत में प्रत्येक पर 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में व्यापक स्तर पर देश की राजधानी दिल्ली चलेगी ग्राम पंचायत तक मनाया जाता है। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा है हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द या भाषा का तिरस्कार नहीं किया। वैसे भी अंग्रेजों के आगमन के पूर्व हिंदी देवनागरी लिपि में उर्दू तथा फारसी शब्दों का समावेश होता रहा है। अंग्रेजों के आने के बाद इसने अंग्रेजी शब्दों को भी आत्मसात किया।
 
हिंदी एक विशाल हृदय की विशाल भाषा है। इसमें अन्य भाषा के अपभ्रंश आने से हिंदी कभी मूल रूप से दिग्भ्रमित या विकृत नहीं हो पाई है। यही वजह है कि हिंदी वैश्विक स्तर पर धीरे-धीरे विस्तारित, प्रचारित एवं प्रसारित होती जा रही है। वर्तमान में विश्व में लगभग 45 करोड़ से अधिक लोग हिंदी भाषा बोलते हैं, इसकी सरलता विश्व के लोगों को प्रभावित करती जा रही है, भारत के विद्वानों, शिक्षाविदों, साहित्यकारों, कवियों, फिल्मी गीत कारों के प्रयासों से हिंदी ने वैश्विक रूप लिया है। हिंदी को वैश्विक रूप से उपभोक्ताओं से जोड़ने के लिए फिल्म निर्माताओं गीतकार एवं संगीत, गानों का भी बड़ा योगदान रहा है। हिंदुस्तान में बनी फिल्म को विदेशों में रह रहे भारतीय तथा अन्य भाषाई लोग उसके गीतों तथा उसके संवाद के कारण उस फिल्म को देखने जाते हैं, जिससे सीधे-सीधे भारतीय फिल्मकारों को विदेशी मुद्रा का अर्जन होता है।
 
इस तरह उपभोक्तावाद, बाजारवाद के नजरिए से देखें तो हिंदुस्तानी उपभोक्ताओं का बहुत बड़ा बाजार वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है। जिससे हिंदी भाषा न सिर्फ बाजारवाद की भाषा बनी है, बल्कि साहित्यिक रूप से भी गीत, ग़ज़ल और गानों के रूप में समृद्ध हुई है। वर्तमान में हिंदी न सिर्फ हिंदुस्तान में बल्कि वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय होती जा रही है। भारत में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए 14 सितंबर को हिंदी दिवस मना कर एवं वैश्विक स्तर पर विश्व हिंदी सम्मेलन अलग-अलग देशों में आयोजित किया जाता रहा है। इस संदर्भ में पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार तथा विस्तार को कोई भाषा रोक नहीं सकती है। हिंदी भारत की एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसके माध्यम से भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न भाषा वासी लोग आपस में अपने विचारों का आदान-प्रदान सकते हैं।
 
एनी बेसेंट ने हिंदी भाषा को लेकर काफी सत्य कहा है कि भारत के विभिन्न प्रांतों में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं मैं जो भाषा सबसे प्रभावशाली बन कर सामने आती है वह हिंदी है। वह व्यक्ति जो हिंदी जानता है पूरे भारत में किसी भी प्रांत की यात्रा कर सकता है और हिंदी बोलने वालों से हर तरह की जानकारी प्राप्त कर सकता है। अब तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों का प्रचार प्रसार पूर्णता हिंदी में करना शुरू कर दिया। इसी तारतम्य में यदि यह कहा जाए कि हिंदी वैश्विक बाजार वाद या उपभोक्तावाद की सबसे बड़ी एवं सशक्त भाषा बन गई है, तो यह अतिरेक नहीं होगा। अंग्रेजी जरूर अंतर राष्ट्रीय भाषा है,पर हिंदी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बोले जाने वाली द्वितीय भाषा तो जरूर है ही, एवं उपभोक्ताओं के लिए यह प्रथम स्थान रखती है।भारत में हिंदी भाषा सभी प्रांतों सभी राज्यों को एकता के सूत्र में पिरोने वाली एक मातृभाषा स्थापित रूप से है। इसीलिए इसे राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा का वास्तविक सम्मान दिए जाने की आवश्यकता है।
 
संजीव ठाकुर, स्तंभकार, स्वतंत्र टिप्पणीकार, चिंतक, लेखक

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