केजरीवाल : जिनकी राजनीति को कोई नहीं समझ सका 

केजरीवाल : जिनकी राजनीति को कोई नहीं समझ सका 

देश की राजनीति में अरविंद केजरीवाल एक ऐसा नाम है जिनको जितना छेड़ोगे वह उतना ही निखरेगा। एक छोटे से राजनैतिक सफर में दो राज्यों में सरकार बना लेना कोई छोटी बात नहीं है। आप उनकी राजनीति को समझिए कि वह विपक्षी दलों के विरोध में भी बोलते हैं और विपक्ष के कार्यों को भी स्वयं करने लगते हैं। केजरीवाल ने कभी हिन्दू मुस्लिम नहीं किया जब कि देश में राजनीति के दो धड़े हैं जिसमें एक हिंदुत्ववादी है और दूसरा मोहब्बत का पैगाम देने वाला है। लेकिन केजरीवाल ने केवल अपने कार्यों पर बात करके विपक्ष को पीछे धकेला है। केजरीवाल जमानत पर बाहर आ चुके हैं और उनकी जमानत पर भी तमाम सर्त हैं जिसमें सबसे बड़ी सर्त यह है कि वह जमानत पर रहते हुए भी मुख्यमंत्री के रुप में कार्य नहीं कर सकेंगे। जमानत पर बाहर आने पर विपक्षी दलों ने केजरीवाल पर कई निशाने साधे जिसमें उनके मुख्यमंत्री निवास को एक महल बताया गया। केजरीवाल ने तुरंत ही घोषणा कर दी की वह इस महल को भी छोड़ देंगे। 
 
कल ही अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि वह दो दिन बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। जरुरी भी था क्योंकि जब किसी मुख्यमंत्री के पास अधिकार न बचें तो इस्तीफा ही एक विकल्प है। लोगों को उम्मीद थी कि केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा बड़ी मुश्किल से देंगे क्योंकि जब वह जेल गए तो भी उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। लेकिन जेल से बाहर निकलते ही इस्तीफे का ऐलान कर दिया। अब लोगों की निगाह दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री के पद पर टिकीं हैं जिनमें सुनीता केजरीवाल, अतिशि और सौरभ भारद्वाज का नाम सामने आ रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री कोई भी बने सुप्रीमो तो अरविंद केजरीवाल ही रहेंगे। अरविंद केजरीवाल ने एक तीर से कई निशानों को साधा है और जनता की सहानुभूति बटोरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जेल से बाहर आते वक्त उनके शब्द थे कि उनकी ताकत सौ गुना और बढ़ी है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि अरविंद केजरीवाल में जुझारू पन तो है। और यही जुझारू पन राजनीति का एक अहम हिस्सा होता है।
 
अरविंद केजरीवाल की राजनीति को समझ पाना इतना आसान नहीं है। कहीं वह कांग्रेस से समझौता करके चुनाव लड़ते हैं और कहीं कांग्रेस के विरुद्ध ताल ठोंकते नजर आते हैं। अरविंद केजरीवाल का सीधा आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी उनसे डरी हुई है क्योंकि कि वह सत्य बोलते हैं। यानि कि उन्होंने अपने आप को बेगुनाह साबित करने की कोशिश की है। हालांकि अभी वह बरी नहीं हुए हैं केवल जमानत ही मिली है लेकिन जनता के सामने उन्होंने बेगुनाह साबित होने की कोशिश की है। आम आदमी पार्टी का जन्म ही अन्ना हजारे के आंदोलन के संघर्ष के समय ही हुआ है। केजरीवाल ने हमेशा सकारात्मक सोच के साथ राजनीति की है जब केजरीवाल से इस्तीफा देने की मांग की जा रही थी तब उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया लेकिन जब उनको सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत में एल जी की परमीशन के बिना कोई भी कार्य करने से रोक का आदेश मिला तब उन्होंने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। यानि कि वह ऐसा पद स्वीकार नहीं करेंगे जिसमें हर कार्य में एलजी की स्वीकृति लेनी हो। 
 
केजरीवाल को जितना घेरने की कोशिश की गई है उतना ही वो निखर कर सामने आए हैं। जिस पार्टी की टॉप लीडरशिप जेल में हो उस पार्टी के हौसले इतने बुलंद यह एक सकारात्मक सोच ही है। जो कि विपक्ष को परेशान करती है। अब केजरीवाल ने हरियाणा विधानसभा के चुनाव अकेले दम पर लड़ने का फैसला किया है। इस फैसले पर उनकी सोच क्या है यह तो वही बता सकते हैं लेकिन उनके इस निर्णय से कांग्रेस को जरुर चोट पहुंचेगी क्यों कि इस बार हरियाणा में कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत दिखाई दे रहे हैं। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को पांच पांच सीटें हासिल हुई थीं। मतलब लड़ाई कांटे की है। पार्टी की टॉप लीडरशिप जब जेल में थी तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शायद आम आदमी पार्टी खत्म हो जायेगी लेकिन पार्टी के नेताओं की तारीफ करनी चाहिए कि उनके हौसले अब भी बुलंद हैं।
 
एक तरफ जहां केजरीवाल पर मुख्यमंत्री के पद के मोह का आरोप लग रहा था वहीं जेल से रिहा होने के बाद उनके अधिकार भी दिल्ली के एलजी के आधीन कर दिए गये थे। इस तरह इस्तीफे की घोषणा करके केजरीवाल ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। और यह एक बहुत बड़ी राजनैतिक चाल है। केजरीवाल की छवि को जितना गिराने की कोशिश की गई हो लेकिन अरविंद केजरीवाल ने जनता में अपनी छवि को बरकरार रखा है। आम आदमी पार्टी के पास किसी एक जाति और किसी एक धर्म का वोट नहीं है। उनको हर वर्ग का वोट मिलता है। उनको हिंदुत्व विरोधी बनाने की बहुत कोशिश की गई लेकिन केजरीवाल अपने आप पर डटे रहे। यहां तक कि दीपावली के अवसर पर भी उन्होंने लाइव लक्ष्मी पूजन कर एक तरफ़ प्रदूषण को खत्म करने की अपील की तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपनी हिंदू छवि को बरकरार रखा।
 
आम आदमी पार्टी को छोड़कर जितने नेता जाने थे वो चले गए। अब आम आदमी पार्टी के पास जो भी लीडरशिप है वो जुझारू है और कर्मठ है। इसको डिगा पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि न मुमकिन है। योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, कपिल मिश्रा, कुमार विश्वास, शाजिया इल्मी, आशुतोष जैसे तमाम नेता आम आदमी पार्टी की टॉप लीडरशिप में थे लेकिन वह पार्टी छोड़ गए। एक वक्त ऐसा आ गया था कि लग रहा था कि आम आदमी पार्टी खत्म हो जाएगी लेकिन आम आदमी पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ा उसका सबसे बड़ा कारण था अरविंद केजरीवाल का जुझारू पन, राजनीति का जुनून और जनता के बीच अपनी पकड़ बनाना। जब तक अरविंद केजरीवाल राजनीति में हैं शायद आम आदमी पार्टी को कोई नहीं तोड़ सकता। और यही कारण है कि अपने छोटे से सफ़र में एक पार्टी ने न सिर्फ दो राज्यों में अपनी सरकार बनाई बल्कि देश में अपनी पहचान भी बनाई।
 
बीते वर्षों में देश की राजनीति में हमने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। कांग्रेस को देश की सबसे बड़ी पार्टी के रुप में देखा है और कांग्रेस को अपने अस्तित्व के लिए जूझते भी देखा है। लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के दो सांसदों के समय को भी देखा है वहीं लोकसभा में प्रचंड बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार को देखा है। उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को अपने दम पर सरकार बनाते देखा है और वही बसपा को शून्य पर आउट होते हुए भी देखा है। लेकिन आम आदमी पार्टी ने अपने छोटे से सफ़र में केवल बढ़त ही हासिल की है। केजरीवाल जब तक मुख्यमंत्री पद पर रहे उन्होंने दिल्ली के एलजी को चैन से नहीं बैठने दिया। यदि कोई फाइल एल जी ने मांगी तो उस बात को भी जनता के सामने रख दिया। इसलिए केजरीवाल की राजनीति एक अलग प्रकार की राजनीति ही दिखाई पड़ रही है।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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