संजीव-नी।

संजीव-नी।

सामने आओ तो,पलकें झुका देना तुम।
 
एहसास दिल में न दबा देना तुम,
होठों से तिरछा मुस्कुरा देना तुमl
 
ये दिल की लगी है, घबरा न जाना,
सिर्फ आंखों में ही मुस्कुरा देना तुम।
 
नया नया रूप है तुम्हारे यौवन का,
न सम्भले तो बहक न जाना तुम।
 
आ जाओ जरा सुनहरी रोशनी में,
रातों में चांदनी सा बन जाना तुम,
 
निशा के टिमटिमाते जुगनू हैं हम,
राह दिखाता सितारा बन जाना तुम।
 
पर्दे में छुपने की अदा है बड़ी प्यारी,
सामने आओ तो,पलकें झुका देना तुम।
 
जज्बातो के एहसास पुराने हैं हमारे,
दुनिया के लब्जों से टूट न जाना तुम।
 
कोशिशों से दीदार होता है तेरा संजीव,
बीच राह में अकेला,न छोड़ जाना तुम।
 
संजीव ठाकुर, 

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