जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के पिछड़ने की क्या है वज़ह
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जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस+ नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनती दिखाई दे रही है। लेकिन पीडीपी इतना कमजोर प्रदर्शन किसी को भी उम्मीद नहीं है। जम्मू-कश्मीर में पिछली बार खंडित जनादेश मिला था, तब पीडीपी ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार का गठन किया था। लेकिन यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी और भारतीय जनता पार्टी ने पीडीपी से समर्थन वापस ले लिया और बाद में वहां राज्यपाल शासन लगा दिया और यह शासन काफी समय तक चलता रहा। लेकिन जब जम्मू-कश्मीर में चुनाव की तिथियां घोषित हुईं तो शायद लोगों को इतनी उम्मीद नहीं थी कि महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी जिसने पिछली बार भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनायेगी वो लगभग साफ हो जायेगी। इसका सीधा कारण यही दिखाई दे रहा है कि शायद जनता को पिछली बार भाजपा और पीडीपी का गठबंधन पसंद नहीं लगा। और इसका सीधा फायदा कांग्रेस और और एनसीपी को मिला है। इस चुनाव परिणाम से पीडीपी को काफी कुछ सीखना होगा।
जम्मू-कश्मीर में आखिरी विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था। उस चुनाव में मुख्य राजनीतिक दलों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा देखी गई थी। 2014 में जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को 28 सीटें, भारतीय जनता पार्टी को 25 सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 सीटें, कांग्रेस को 12 सीटें तथा अन्य छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी कुछ सीटें जीतीं। इस चुनाव के बाद किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। इसके चलते पीडीपी और भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई, और मुफ्ती मोहम्मद सईद ने मुख्यमंत्री पद संभाला। उनके निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं।
हालांकि, 2018 में भाजपा ने इस गठबंधन से
इस गठबंधन पर विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी पर जबरदस्त आरोप लगाये थे और वह आरोप इसलिए लगे थे कि भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा और और पीडीपी की विचारधारा में जमीन आसमान का अंतर है। लेकिन कांग्रेस को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने पीडीपी को समर्थन दे दिया था। और इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने पीडीपी से समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया और 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। तब से जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं। उधर जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग करके एक नया केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। बीजेपी को लगता था कि लद्दाख को अलग करने से शायद जम्मू-कश्मीर में कुछ प्रभाव भारतीय जनता पार्टी की स्थिति मजबूत होगी लेकिन ऐसा होता दिखाई दे रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में लद्दाख में एकमात्र सीट पर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार ने जीत हासिल कर भारतीय जनता पार्टी के के प्रत्याशी से लगभग दुगने वोट हासिल किए थे।
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस ने काफी वर्षों तक सत्ता सम्हाली है। इसके बाद पीडीपी ने भी पहले सरकार चलाई है लेकिन पीडीपी के आने के बाद लड़ाई वहां चतुष्कोणीय हो गई है। जम्मू क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का बर्चस्व हमेशा रहता है जबकि कश्मीर घाटी में नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और पीडीपी वोटों का बंटवारा करतीं हैं। इसलिए वहां गठबंधन आवश्यक हो गया है। और इस बार नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने गठबंधन किया था। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सीटें और वोट प्रतिशत बढ़ा है लेकिन वहीं पीडीपी को बहुत भारी नुक़सान हुआ है। अब बात यहां यह उठती है कि क्या पीडीपी को भारतीय जनता पार्टी का समर्थन लेना भारी पड़ गया है। या अन्य कोई कारण हैं। पीडीपी चुनाव बाद जरूर इस पर चर्चा करेगी। फ़िलहाल जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनती दिख रही है।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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