नेपोटिज़्म: लोकतंत्र का पारिवारिक तमाशा
लोकतंत्र वह व्यवस्था है जो जनता के हित में कार्य करती है, और इसे जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से चलाया जाता है। परंतु जब राजनीति में वंशवाद या पारिवारिक राजनीति (नेपोटिज़्म) का दखल बढ़ता है, तो लोकतंत्र की परिभाषा में बदलाव आ जाता है। अब यह "जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए" नहीं बल्कि "परिवार का, परिवार द्वारा और परिवार के लिए" बन जाता है। यह बदलाव लोकतांत्रिक आदर्शों को कमजोर करता है और राजनीति को एक पारिवारिक संपत्ति में तब्दील कर देता है।
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का उदाहरण लिया जा सकता है, जिन्होंने राजनीति में पारिवारिक विरासत को एक नई दिशा दी। डोनाल्ड ट्रंप, जो खुद राजनीति में प्रवेश करने से पहले एक व्यवसायी थे, ने अपने परिवार को राजनीति के केंद्र में बैठाया। उनकी बेटी इवांका ट्रंप, जिनका अनुभव फैशन और रियल एस्टेट के क्षेत्र में था, अचानक व्हाइट हाउस के महत्वपूर्ण मंचों पर नजर आने लगीं। इवांका ने न केवल अमेरिकी राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान पाया, बल्कि उनके भाई डोनाल्ड जूनियर ट्रंप ने भी अपनी राजनीतिक पहचान बनाई।
यही नहीं, ट्रंप परिवार ने यह साबित कर दिया कि राजनीति अब पारिवारिक संपत्ति बन चुकी है, जहां हर सदस्य को एक कुर्सी दी जाती है, भले ही उनकी योग्यता पर सवाल उठे। उदाहरण स्वरूप, जब ट्रंप चुनावी मंच पर अपने परिवार को राजनीति से बाहर रखने की बात करते थे, तो सत्ता में आते ही अपने परिवार के सदस्यों को पद दे देते थे। इससे यह साबित होता है कि अमेरिका में लोकतंत्र अब "ट्रंप ड्रीम" बन गया है, जिसमें योग्यता नहीं, बल्कि पारिवारिक संबंध मायने रखते हैं।
ब्रिटेन में भी यह स्थिति भिन्न नहीं है। प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने अपने मंत्रिमंडल को इस प्रकार गठित किया कि अधिकांश मंत्री एक-दूसरे के रिश्तेदार थे। उनके मंत्रिमंडल में परिवारवाद का बोलबाला था, और यह दिखाता है कि ब्रिटेन में भी वंशवाद अब लोकतंत्र का हिस्सा बन चुका है। यहाँ तक कि ब्रिटेन ने "भाई-भतीजावाद" को "सभ्यता" का नाम दे दिया। 28 मंत्रियों में से अधिकांश एक-दूसरे के करीबी रिश्तेदार थे, जिससे यह संदेश मिलता है कि ब्रिटेन अब लोकतंत्र नहीं, बल्कि एक पारिवारिक निगम चला रहा है।
भारत में नेपोटिज़्म की स्थिति बहुत गंभीर है। नेहरू-गांधी परिवार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक, इस परिवार ने भारतीय राजनीति में वंशवाद को स्थापित किया। जब तक भारतीय राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार का नाम जुड़ा हुआ है, तब तक इसे "योग्यता" और "कुशलता" की बजाय "परिवार की विरासत" के रूप में देखा जाता है। यह स्थिति केवल राष्ट्रीय राजनीति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राज्य स्तर पर भी यही स्थिति देखने को मिलती है। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव और बिहार के लालू प्रसाद यादव ने अपने परिवार को ही राजनीति में स्थापित किया। यहाँ तक कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी उसी पारिवारिक राजनीति की मिसाल है। इन नेताओं ने परिवारवाद को इतना मजबूत किया कि अब यह भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।
नेपोटिज़्म का सबसे हास्यास्पद रूप तब सामने आता है, जब नेता खुद पारिवारिक राजनीति के खिलाफ भाषण देते हैं और सत्ता में आने के बाद अपने परिवार को प्रमुख पदों पर बैठा देते हैं। यह विरोधाभास केवल भारतीय राजनीति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन में भी यह देखा गया है। उदाहरण के तौर पर, डोनाल्ड ट्रंप और कीर स्टारमर ने भी सत्ता में आने के बाद अपने परिवार के सदस्यों को महत्वपूर्ण पद दिए। यह स्थिति यह सिद्ध करती है कि लोकतंत्र अब एक पारिवारिक तमाशा बन गया है, जहाँ राजनीति का उद्देश्य "योग्यता" नहीं, बल्कि "परिवार का नाम" बन चुका है।
नेपोटिज़्म का असली कारण जनता की उदासीनता और नेताओं की सत्ता की लालसा है। जब तक जनता नेताओं से पारदर्शिता और योग्यता की उम्मीद नहीं करेगी, तब तक वंशवाद का यह खेल चलता रहेगा। यह बदलाव लाने के लिए लोगों को जागरूक होने की आवश्यकता है। नेताओं को केवल उनके पारिवारिक संबंधों के कारण नहीं, बल्कि उनके नीतिगत कौशल और योग्यता के आधार पर चुना जाना चाहिए। इसी प्रकार, राजनीतिक दलों को अपनी आंतरिक संरचना में सुधार लाने होंगे ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सही दिशा मिल सके। नेपोटिज़्म लोकतंत्र के आदर्शों का मजाक बनाता है। ट्रंप, स्टारमर और भारतीय राजनीतिक परिवार इस बात के प्रतीक हैं कि वंशवाद अब वैश्विक समस्या बन चुका है। लोकतंत्र का असली अर्थ तभी बच पाएगा, जब जनता "परिवार" को नहीं, बल्कि "योग्यता" को चुनेगी। जब तक यह नहीं होता, तब तक राजनीति का यह पारिवारिक तमाशा चलता रहेगा, और हम सभी, लोकतंत्र के दर्शक, इस शो का हिस्सा बने रहेंगे।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (म.प्र.)
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