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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी कैसे जख्म दिखाएँ ज़माने को l

संजीव-नी कैसे जख्म दिखाएँ ज़माने को l             कैसे जख्म दिखाएँ ज़माने को, हमेशा जहर दिया दीवाने को।।    नादाँ न समझ पाया जमाने को, हमेशा हमदर्द समझा ज़माने को।    फरेब नहीं किया कभी किसी से, मासूम,बूझ न पाया ज़माने को।    बन्दीश थी प्यार पर दीवाने की, इश्क में...
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