युवाओं को रोजगार पर ठोस नीति बनानी होगी

युवाओं को रोजगार पर ठोस नीति बनानी होगी

भारत में रोजगार एक बहुत ही ज्वलंत समस्या रही है और जैसे जैसे आबादी बढ़ती जा रही है वैसे ही यह समस्या और बढ़ती चली जा रही है। यह सत्य है कि कोई भी सरकार सभी को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती क्योंकि एक तो इसके लिए बहुत ही बड़े बजट की आवश्यकता है और इतनी आवश्यकता भी केन्द्र और राज्य सरकारों के पास नहीं है। लेकिन हर व्यक्ति को रोजगार मिले इस पर अभी ठोस नीति नहीं बनी है। प्राइवेट सेक्टर केवल अनुभवी और अव्वल दर्जे के युवाओं को लेकर इति श्री कर लेता है। अब बात आती है स्वरोजगार की जिसके लिए सरकार आर्थिक मदद तो दे रही है लेकिन उसमें इतने उतार चढ़ाव हैं कि सौ में से बीस लोग ही सफल हो पाते हैं वाकी के लोग व्यापार बंद कर देते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि किसी भी व्यापार के शुरुआत में ही इतने कानूनी पेंच हैं जिनको नया व्यवसाई सह नहीं पाता और वह अपना व्यवसाय बंद कर देता है।

 
यदि हम हर किसी को सरकारी नौकरी नहीं दे सकते तो उसके व्यवसाय की प्रारंभिक अवस्था में आने वाली पेचीदगियों को तो कम कर ही सकते हैं आम तौर पर जिनके कारण नया व्यवसाई असफल हो जाता है और वह फिर से बेरोजगार की श्रेणी में आ जाता है। निश्चित तौर पर हमें इस पर बहुत विचार करने की आवश्यकता है। नहीं तो आने वाला समय और भी विस्फोटक हो सकता है। जब सरकार स्वरोजगार की बात करती है तब इस तरह की समस्या पर और अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसमें कई सरकारी पेचीदगियों आतीं हैं। सर्व प्रथम उसको एक जगह की आवश्यकता होती है। और जैसे तैसे वह जगह तलाश कर लेता है तो व्यापार करने के कारण सरकार की निगाह में वह जगह व्यवसायिक घोषित हो जाती है जिस पर अत्यधिक हाउस टैक्स देना पड़ता है।
 
 दूसरी तरफ किसी भी व्यवसाय के लिए विद्युत की आवश्यकता पड़ती है चाहे उसमें कम ही बिजली का प्रयोग किया जाता हो लेकिन बिजली कनेक्शन भी व्यवसायिक कराना पड़ता है। जिसका विद्युत भार और दर महंगी है। तीसरी चीज उसके रजिस्ट्रेशन, उसकी जीएसटी रजिस्ट्रेशन आदि आदि इतनी पेचीदगियां हैं कि नया व्यवसाई इन्हीं सब चीजों में उलझ कर रह जाता है और यही कारण है कि युवा फिर से व्यवसाय बंद कर नौकरी की तरफ भागता है। मैं दुनियां के अन्य देशों की बात नहीं कर रहा लेकिन भारत में युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए हमको कम से कम हर क़ानूनी पेचीदगियों में पांच वर्ष तक छूट देने की आवश्यकता है।
 
तभी हम देश में स्वरोजगार की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं। आज देश का हर दूसरा युवा काम की तलाश में भटक रहा है। लेकिन हमने कभी भी इस पर गहनता से अध्ययन किया ही नहीं है कि आखिरकार युवा वर्ग स्वरोजगार से क्यों दूर भागता है और क्यों उसका रोजगार सफल नहीं हो पाता है। सरकारी तंत्र युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करता है और उसका प्रशिक्षण भी देता है यहां तक कि उसको आर्थिक सहायता भी देता है। लेकिन वह फिर भी फेल हो जाता है। इसका सीधा कारण यही है कि उसका व्यवसाय चले या न चले उसे व्यवसायिक भूमि का टैक्स सरकार को देना है। व्यवसाय चले न चले व्यवसायिक विद्युत बिल देना है। जीएसटी का रजिस्ट्रेशन कराने के बाद हर मह वकील को फीस देनी ही देनी है और यही सब कारण हैं जो युवा उद्यमी को ज्यादातर असफलता का कारण बनते हैं।
 
 जब हम व्यवसाय और स्वरोजगार की बात करते हैं तो हमें बहुत से उदाहरण दिए जाते हैं कि किस तरह से टाटा ने अपने व्यवसाय की शुरुआत कैसे की थी। अंबानी, महेंद्रा, अडानी, गोदरेज आदि आदि बहुत से उदाहरण हमें प्रेरणा देने के लिए दिये जाते हैं। लेकिन कभी भी असफल उद्यमियों के विषय में हमें नहीं बताया जाता क्यों कि सकारात्मक सोच के साथ युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन यह भी सत्य है की सौ में से अस्सी उद्यमी असफल भी होते हैं। और नये व्यवसाय में तो इसकी संभावना और अधिक बन जाती है। हमारी सरकारों को इसकी जमीनी हकीकत को समझना होगा। हमारे यहां आम तौर पर पढ़ाई को केवल नौकरी से ही जोड़ कर देखा जाता है। यहां बहुत से उदाहरण हमें सकारात्मक भी देखने को मिलते हैं जहां हम पाते हैं कि देश में ऐसे भी तमाम लोग हैं जिन्होंने बड़ी सरकारी या मल्टीनेशनल कंपनी की को त्यागकर भी व्यवसाय को अपनाया है। लेकिन हर व्यक्ति कि सोच और तरीका एक सा नहीं हो सकता है। यहां पर हम उदाहरण के तौर पर देश की एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान के संचालक विकास दिव्य कीर्ति की बात कर लेते हैं कि जब उन्होंने आईएएस की परीक्षा पास करके देश की सर्वोच्च नौकरी को ज्वाइन किया तो शायद तैयारी करते समय उन्होंने यह नहीं सोचा होगा कि वह एक दिन इस नौकरी को छोड़ देंगे। लेकिन नौकरी छोड़ने के बाद भी उन्होंने वह व्यवसाय चुना जो देश के लाखों बच्चों को नौकरी करने की परीक्षा पास करने के लिए तरीके बता रहा है। और उन्हें प्रेरित कर रहा है कि आप इस तरह से पढ़ाई करें तो देश की सर्वोच्च परीक्षा को पास कर सकते हैं। 
               विकास दिव्य कीर्ति ने कोई भी ऐसा संस्थान नहीं खोला जो युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षित कर रहा हो या प्रेरणा दे रहा हो। हमने यहां यह बात इसलिए की क्यों कि प्रेरणा हमें सफल लोगों से ही मिलती है लेकिन सफलता का प्रतिशत कितना है शायद हम यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं। यहां पर हम एक और उदाहरण दे रहे हैं कि देश में हर साल लाखों बच्चे, बीटेक, एमसीए और एमबीए जैसी ताकत ऊंची डिग्री धारण करते हैं। इनमें से कुछ लोग अच्छे पैकेज पर नौकरी पा लेते हैं और कुछ लोग साधारण पैकेज पर ही नौकरी करने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि व्यवसाय हमेशा रिश्क माना गया है और वहीं हमारे ही देश में एक एमबीए चाय वाला जैसे लोग भी हैं जो कि देश में एक मिसाल पेश करते हैं। कहने का मतलब हमने अभी तक स्वरोजगार के लिए प्रचार प्रसार तो किया है लेकिन वो बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई हैं जो कि एक नये उद्यमी के लिए आवश्यक हैं। भारत में एक युवा को व्यवसाय शुरू करने के लिए हजार बार सोचना पड़ता है। क्यों कि एक तरफ सरकारें मदद करतीं हैं तो दूसरी तरफ उनपर तमाम बोझ भी लाद देती हैं और यही बोझ उनकी असफलता का कारण बनता है। जिसकी आर्थिक स्थिति ठीक होती है वह किसी व्यवसाय में हो रहे नुकसान को ज्यादा समय तक सहन करने में समझ होता है और उसकी सफलता के प्रतिशत बढ़ जाते हैं लेकिन जिसकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होती वो जल्द ही नुकसान सह रहे अपने व्यवसाय को बंद कर देता है। हम गरीबों को जिस तरह से प्रधानमंत्री आवास योजना के मकान सस्ते में दे रहे हैं उसी तरह हम उसको सस्ते दर पर व्यवसायिक ज़मीन,  दुकान भी दे सकते हैं यदि उसका व्यवसाय चल गया तो मकान तो वह अपने आप कर ही लेगा। फिलहाल एक एक गंभीर मुद्दा है और इस विषय हमें कुछ न कुछ ठोस नीति बनाने की आवश्यकता है।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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