ट्रम्प पर हमले ने खोली सुरक्षा व्यवस्था की पोल

ट्रम्प पर हमले ने खोली सुरक्षा व्यवस्था की पोल

समस्त विश्व में सबसे ताकतवर और सुरक्षित देश होने का दम भरने वाले अमरीका में 13 जुलाई, शनिवार को पूर्व राष्ट्रपति और इसी साल नवंबर में होने वाले अमेरिकन राष्ट्रपति चुनावों मे रिपब्लिकन पार्टी के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प पर जानलेवा हमला हुआ। हमलावर द्वारा दागी गोली ट्रम्प के कान को छूकर निकल गई। यह तो ट्रम्प के दिन अच्छे थे कि निशाना जरा सा चूक गया अन्यथा जान जाना निश्चित था। इस हमले ने अमेरिका में बड़े नेताओं को दी जाने वाली सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र की पोल खोल के रख दी है। यदि हम भारत की तुलना अमेरिका के सर्वोच्च राजनयिक को दी जाने वाली सुरक्षा से करे तो अमेरिका में पद पर रहते 5 राष्ट्रपतियों पर हमले हुए, जिसमें से 4 बार हमलावर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर हत्या करने में सफल रहे और मात्र एक अमेरिकन राष्ट्रपति गोली लगने के बाद भी बच पाने में सफल हुए।
 
वही यदि भारत की बात करे तो भारतीय सुरक्षा व्यवस्था और खुफ़िया विभाग इतना सुदृढ है कि आज तक किसी भी भारतीय राष्ट्रपति पर हमला करने में कोई भी सफल नही हो पाया है। वहीं प्रधानमंत्री पर हुए हमले की बात करें तो सिर्फ दो बार ऐसा करने में देश विरोधी ताकते सफल हो पाई है। 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी पर उनके ही सुरक्षाकर्मियों द्वारा हमला किया गया। जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। यह हत्याकांड सुरक्षा एजेंसियों की असफलता नही बल्कि विश्वासघात का परिणाम था। वही दूसरा हमला श्रीलंका दौरे पर गए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर हुआ था। 30 जुलाई 1987 में कोलंबों में गार्ड ऑफ ऑनर दे रहे एक सैनिक ने अपनी बंदूक के पिछले हिस्से से राजीव गांधी को मारने की कोशिश की थी।
 
इस हमले में राजीव गांधी बाल-बाल बच गए थे। यदि पूर्व प्रधानमंत्री पर हुए हमले की बात करे तो यह हमला भी राजीव गांधी पर 21 मई 1991 को हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री को अपनी जान गवानी पड़ी। अमेरिका के राजनीतिक इतिहास में ऐसे कई राष्ट्रपतियों के नाम हैं जिनकी या तो हत्या कर दी गई या फिर मारने की कोशिश की गई। अमेरिका मे इस तरह की पहली हत्या तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम लिंकन की हुई। 14 अप्रैल 1865 को वाशिंगटन डीसी में अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या फोर्ड थियेटर में एक नाटक देखते हुए रात सवा दस बजे हमलावर जॉन वाइक्स बूथ द्वारा सिर पर पीछे से गोली मारकर की थी। लिंकन को अस्पताल ले जाया गया जहां 15 अप्रैल को उनकी मौत हो गई। गोली मारने वाला जॉन वाइक्स बूथ पेशेवर थिएटर आर्टिस्ट था।
 
वो गोली मार कर मौके से फरार हो गया था परन्तु 10 दिन बाद वर्जीनिया में अमेरिकी सैनिकों से हुई मुठभेड़ में उसे मार गिराया गया था। अमेरिका में 19वीं सदी में गुलाम प्रथा का चलन था। इसमें काले लोगों को खरीदा-बेचा जाता था। अब्राहम लिंकन इस गुलाम प्रथा के विरोधी थे। राष्ट्रपति बनने के बाद साल 1863 के दिन उन्होंने दासप्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया। उनके इस फैसले से जॉन वाइक्स बूथ इतना नाराज हो गया कि उसने लिंकन की हत्या कर दी। दूसरी हत्या तत्कालीन राष्ट्रपति जेम्स गार्फील्ड की हुई। वो अमरीका के 20वें राष्ट्रपति थे। जेम्स गार्फील्ड को पद संभाले सिर्फ 4 महीने ही हुए थे। यह हत्या 2 जुलाई 1881 को वाशिंगटन डीसी में हुई थी। वो उस समय वाशिंगटन डीसी के बाल्मोर स्टेशन पर थे। उन्हें न्यू इंग्लैंड जाने वाली ट्रेन पकड़नी थी।
 
वे विलियम कॉलेज जा रहे थे जहां उनकी पढ़ाई हुई थी। यहां वे लोगों के बीच अपने दोनों बेटों को इंट्रोड्यूस कराने वाले थे, लेकिन इससे पहले ही चार्ल्स गुइटो नाम के एक शख्स ने उन्हें गोली मार दी। गोली उनके सीने में धंस गई। डॉक्टरों ने गोली निकालने की कई दिनों तक कोशिश की, मगर सफल नहीं हो पाए। ढाई महीने के बाद 19 सितंबर को राष्ट्रपति जेम्स गार्फील्ड की मौत हो गई। हत्यारे गुइटो राजनीति से जुड़ा हुआ था। राष्ट्रपति चुनाव के वक्त गुइटो अपने विचारों को कागज पर छपवाकर बांटने लगा। जब गार्फील्ड चुनाव जीत गए तो उसे लगा कि उसके छपवाए भाषणों को पढ़कर ही गार्फील्ड को ये सफलता मिली है, इसलिए पुरस्कार के रूप में उसे राजनयिक जिम्मेदारी तो मिलनी ही चाहिए। इसके बाद गुइटो ने यूरोप के कई दूतावासों में राजनयिक बनने की कोशिश की मगर वह इसमें कामयाब नहीं हुआ।
 
इसी से नाराज हो उसने गार्फील्ड की हत्या की। अमेरिका के 25वें राष्ट्रपति विलियम मैककिन्ले का दूसरा कार्यकाल चल रहा था। राष्ट्रपति बफेलो शहर में मैककिन्ले इवेंट में शामिल हुए। 6 सितंबर 1901 उस इवेंट में शामिल होने के बाद मैककिन्ले लोगों से हाथ मिलाने लगे तभी लियोन जोलगोज नाम का शख्स उनके करीब आया और उन पर दो गोलियां दाग दीं। एक गोली उनके शरीर को छूकर निकल गई जबकि दूसरी गोली उनके पेट में जा घुसी। उन्हें फौरन अस्पताल ले जाया गया। 8 दिन बाद 14 सितम्बर को उनकी मौत हो गई। राष्ट्रपति पर गोली चलाने वाले लियोन जोलगोज की नौकरी 1893 के इकोनॉमिक क्राइसिस में जा चुकी थी। वह मैककिन्ले को देश की इस हालत का जिम्मेदार मानने लगा और उनकी हत्या कर दी।
 
अमरीका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने नवंबर 1963 में टेक्सास का दौरा करने का फैसला किया। वे 21 नवंबर को टेक्सास पहुंचे जहां उन्होंने कुछ कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। इसके अगले दिन 22 नवंबर 1963 को वे डलास पहुंचे। उन्हें देखने के लिए सड़कों पर लोगों की भारी भीड़ जुट गई थी। कैनेडी अपने विमान से निकलकर पत्नी जैकलीन के साथ वहां खड़ी एक ओपन लिमोजिन कार में बैठ गए। रैली स्थल पर सड़क के दोनों तरफ जमा भीड़ उनके नारे लगा रही थी। इस दौरान भीड़ के बीच से दो गोलियां चलीं। एक गोली सीधे कैनेडी के सिर में और दूसरी उनकी गर्दन में लगी।
 
उनकी हत्या के पीछे के कारणों का आज तक पता नहीं चल पाया है। 30 मार्च 1981 वाशिंगटन डीसी में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन एक समारोह में हिस्सा लेने के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच कार में बैठने जा रहे थे। उनके चारों तरफ मीडिया और लोगों की भीड़ थी। अचानक उसी भीड़ से निकलकर एक शख्स ने रीगन पर फायरिंग शुरू कर दी। रीगन पर पांच गोलियां दागी गईं लेकिन वे हर गोली से बच गए। छठी गोली बुलेटप्रूफ कार के शीशे से टकराकर फिर से रीगन की ओर लौटी और उनके सीने में जा धंसी। रीगन जमीन पर गिर गए। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने उनके सीने से गोली समय पर निकाल ली जिससे उनकी जान बच गई। 
 
(नीरज शर्मा'भरथल') 
 
 
 
 
 
 

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