योगी के फैसले के विरोध में सहयोगी दल भी मजबूर

योगी के फैसले के विरोध में सहयोगी दल भी मजबूर

उत्तर प्रदेश और देश में उत्तर प्रदेश सरकार का एक फैसला काफी चर्चा में आ गया है। इस फैसले की आवश्यकता क्यों पड़ी और क्या इसके मायने हैं यह तो योगी आदित्यनाथ सरकार ही बता सकती है। इसका विरोध विपक्ष तो कर ही रहा है। केन्द्र सरकार में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल भी अब मुखर हो गये हैं। यह फैसला है कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर जितने भी फल खाने पीने के ढाबे, या खाने पीने की कोई वस्तु हो उसके प्रोपराइटर को वहां अपना नाम लिखना होगा। मतलब रहीम अब राम के नाम से दुकान नहीं चला पाएगा। विपक्ष ने इसकी कुल कर आलोचना की है अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, मायावती, चन्द्रशेखर ने इस पर आपत्ति जाहिर की है कि भारतीय जनता पार्टी वोटों का मजहब के नाम पर ध्रुवीकरण करना चाहती है। भाजपा के सहयोगी दल भी इस निर्णय से अचरज में पड़ गए हैं।
 
खैर वह इसका विरोध दबी जुबान से कर रहे हैं। उन्होंने इसका आरोप सरकार पर न मढ़कर प्रशासन पर मढ़ा है कि प्रशासन को ऐसा नहीं करना चाहिए। जब कि यह फैसला योगी आदित्यनाथ सरकार का है। उत्तर प्रदेश में कुछ ही समय बाद दस सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होने हैं। 2027 के चुनाव की तैयारी करने का भी योगी आदित्यनाथ ने ऐलान कर दिया है। इस फरमान के बाद सरकार और संगठन को लेकर जो विवाद चल रहा था वह भी कहीं न कहीं दब गया है। भारतीय जनता पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। और हिंदुत्व तो उसका मुख्य मुद्दा है ही। और हिंदुत्व वादी लोग सरकार के इस फैसले से खुश भी हैं। विपक्ष पर इस फैसले का कोई असर नहीं पड़ने वाला है लेकिन भाजपा के केंद्र में सहयोगी दल पशोपेश में पड़ गए हैं।
 
दरअसल उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी सहयोगी दलों को भी सीटें दे रही है और सहयोगी दलों को मुस्लिम वोट भी चाहिए। और यदि यह फैसला बरकरार रहा तो वह किस मुंह से मुस्लिम मतदाताओं के बीच जाएंगे। उदाहरण के लिए उपचुनाव में मिल्कीपुर विधानसभा सीट सहयोगी दल आरएलडी को दी जा रही है और आरएलडी इस सीट पर अपना मुस्लिम प्रत्याशी उतारने का मन बना चुकी है।‌ ऐसे में आरएलडी के सामने कई परेशानियां आ रही हैं। वह आवाज तो उठा रही है लेकिन दबे मन से क्यों कि काफी समय बाद जयंत चौधरी को मंत्री पद मिला है और वह नहीं चाहते कि एनडीए में फूट हो।‌ मतलब एनडीए में शामिल रहकर ही वह इस फरमान का विरोध कर रहे हैं।
 
हिंदी पट्टी में भारतीय जनता पार्टी की पकड़ बहुत मजबूत है लगभग हर राज्य में उसकी सरकार है। और धर्म और हिंदुत्व की राजनीति का असर हिंदी पट्टी पर ही पड़ता है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की हार के कारण उथल-पुथल मची है। पार्टी में अंतर्कलह भी खुलकर सामने आ गया था। इसलिए योगी आदित्यनाथ को केन्द्रीय नेतृत्व और आरएसएस को यह दिखाना था कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए उनसे अच्छा कोई नहीं है। आरएसएस भी हिन्दू वादी संगठन है।‌और वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के रिश्ते भी आरएसएस से ठी नहीं लग रहे हैं ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह फरमान केन्द्रीय नेतृत्व और आरएसएस को खुश करने वाला है। लेकिन सड़क पर इस फैसले का विरोध है और इस फैसले से भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हो सकता है। सुनने से यह फैसला भले ही साधारण दिख रहा हो लेकिन इस फैसले के कई मायने हैं। सबसे बड़ी बात कि जो चुनाव में हार की चर्चा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ चल रही थी वह अब दब गई है।
 
विपक्ष आरोप लगा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी मजहब के नाम पर ध्रुवीकरण करना चाह रही है और इसमे छिपे अपने निहित स्वार्थ को तलाश रही है। लेकिन जनता इनके झांसे में नहीं आने वाली है। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है। और इसीलिए इस तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं जिससे कि हिंदुओं को एकजुट किया जा सके। भारतीय जनता पार्टी ने यह घोषणा कर दी है कि वह अपने हिंदुत्व के मुद्दे से पीछे हटने वाली नहीं है। क्यों कि हिंदुत्व के मुद्दे ने ही भारतीय जनता पार्टी को आज यहां तक पहुंचाया है। उत्तर प्रदेश की राजनीति से बिहार का सीधा संबंध है। यदि उत्तर प्रदेश में कोई निर्णय लिया जाता है तो तो इसका असर बिहार पर भी पड़ता है।‌ क्यों कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का कल्चर बिहार से काफी तालमेल खाता है। और इसी लिए जदयू के केसी त्यागी और चिराग पासवान को भी उत्तर प्रदेश सरकार का यह फैसला सही नहीं लगा है और कहा है कि हम इस फैसले के पक्षधर नहीं हैं।
 
 दरअसल भारतीय जनता पार्टी के जितने भी घटक दल हैं इनकी विचारधारा भारतीय जनता पार्टी से बिल्कुल तालमेल नहीं खाती है। भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे को प्रमुखता से रखती है जब कि उसके सहयोगी दल इस मुद्दे पर बोलने से बचते हैं। क्यों कि बिहार में जदयू हो या चिराग पासवान की पार्टी हो इन दोनों को मुस्लिम वोट भी मिलते हैं। और वह कतई नहीं चाहती कि ऐसा कुछ हो कि मुस्लिम उनसे नाराज़ हो जाएं। बरहाल इस मुद्दे के बाद पहली बार केन्द्र सरकार के सहयोगी दलों का विरोध मुखर हुआ है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसा कतई नहीं चाहेंगे कि उनके सहयोगी दल नाराज हों। इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है और वह इन्हीं सहयोगी दलों के द्वारा ही सरकार चला रही है।‌
 
यदि सहयोगी दल खासकर जदयू, चिराग पासवान, और जयंत चौधरी इस मामले पर एकजुट होते हैं तो यह भारतीय जनता पार्टी के लिए परेशानी का शबाब बन सकता है। कांवड़ यात्रा को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमेशा से ही आगे बढ़ कर आए हैं। उन्होंने इस बार भी प्रशासन को आगाह किया है कि कांवड़ियों को कि तरह की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। प्रशासनिक अधिकारी कांवड़ियों का उत्साह बढ़ाने के लिए उन पर पुष्प वर्षा करेंगे। सफाई, जलपान की व्यवस्था के लिए भी सख्त निर्देश दिए गए हैं। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि पिछली सरकारों के समय पर कांवड़ यात्रा मे डीजे पर रोक लगा दी गई थी और ऐसा कोई पर्व नहीं होता था जो सकुशल सम्पन्न हो सके। लेकिन हमारी सरकार के समय में हमने दंगों को खत्म कर दिया है। सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है और बहुत बड़ी संख्या में कांवड़ यात्रा पर लोग निकलते हैं। और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वैसे भी धार्मिक आस्था रखने वालों पर विशेष ध्यान देते हैं।
 
वर्तमान के समय में भारतीय जनता पार्टी में जो उथल-पुथल मची थी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस फैसले के बाद अब उसकी चर्चा पर विराम सा लग गया है और एक नई चर्चा शुरू हो गई है।‌ लेकिन भारतीय जनता पार्टी में मामला अभी जमा नहीं हैं। दिल्ली में मीटिंग पर मीटिंग हो रहीं हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी कमान स्वयं अपने हाथों में लेली है। जब कि ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संगठन के कार्यों में पहली बार कूदे हों। यानि कि मामला गंभीर है। चाहे केवल प्रसाद मौर्या हों या भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हों। सभी के साथ मीटिंग की जा रही हैं और शायद यही समझाया जा रहा है कि वह उत्तर प्रदेश के उपचुनाव तक शांत रहें और जनता में कोई ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए जिससे कि उपचुनाव में हमें क्षति पहुंचे।
 
इसी बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक नये मामले पर सभी को बोलने पर मजबूर कर दिया है। हालांकि मुख्यमंत्री का यह अपना निर्णय है और उनके इस निर्णय पर केन्द्रीय नेतृत्व ने अभी अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। कांवड़ यात्रा मार्ग पर अपनी दुकान पर नाम की तख्तियां लगाना एक अलग तरह का राजनैतिक प्रयोग माना जा रहा है। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे कहीं उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को कोई नुक्सान न उठाना पड़ जाए।
 
अब देखना यह है कि भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल जो इस फैसले का विरोध कर रहे हैं वह किस हद तक विरोध कर पाते हैं। क्यों कि वह केंद्र सरकार में शामिल हैं। वह यह कहकर बच नहीं सकते कि यह भारतीय जनता पार्टी का फैसला है। क्यों कि यदि उनके लिए कुछ अहित हो रहा है तो आवाज तो उठेगी ही। अभी इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के सहयोगी दलों की कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है लेकिन यह एक ऐसा फैसला है जिसको आसानी से उत्तर प्रदेश के सहयोगी भी स्वीकार नहीं कर सकते। हां फैसले का बचाव जरूर कर सकते हैं। और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय प्रवक्ता कुछ इसी तरह बचाव और विरोध की राजनीति करते नजर आ रहे हैं।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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