केवल राहत और रियायत के लिए नहीं होता बजट 

केवल राहत और रियायत के लिए नहीं होता बजट 

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज वर्ष 2024-25 के लिए केन्द्रीय बजट संसद में पेश किया। और हर बार की तरह इस बार भी विपक्ष के निशाने पर रहे बजट के अंश लेकिन यह बजट क्यों बनता है और हमें इसमें क्या देखना होता है इसपर कोई भी बात नहीं करना चाहता। विपक्ष का काम सत्ता पक्ष के किसी भी कार्य को ग़लत कहना सही नहीं है। यह बात उनके लिए भी लागू होती है जो आज सत्ता में हैं। क्यों कि सत्ता आती जाती रहती है लेकिन बजट हमारे देश की तरक्की के लिए एक रास्ता तय करता है। हां हम यह कह सकते हैं कि जिस क्षेत्र में राहत और रियायत की दरकार है वहां देनी चाहिए लेकिन हम हर क्षेत्र में तो ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि इससे हमारा बजट बिगड़ता है। लेकिन यह जरूरी है कि बजट में जो बातें कही जाए या रखी जाएं उनको पूरा अवश्य करना चाहिए। केन्द्रीय बजट जब संसद में पेश होने को होता है तो इसमें हर सेक्टर उम्मीद लगाए बैठा रहता है और वह केवल अपने हित की बातों को ही सही समझता है। लेकिन जब हम देश के लिए बजट तैयार करते हैं तो हमें हर राज्य और हर व्यक्ति के लिए सोचना होता है। इसके लिए कई बार कड़े कदम भी उठाने होते हैं। लेकिन यदि बजट में राजनीति प्रवेश कर गई तो हम उस बजट को सही मान ही नहीं सकते। कभी-कभी सरकारें वोट बैंक की तरफ ध्यान करके भी बजट तैयार करतीं हैं। लेकिन दूसरे उन सेक्टर को उससे नुकसान पहुंचता है। जो कर के रूप में सरकार को बहुत कुछ देते हैं लेकिन जब वो किसी तरह की रियायत की उम्मीद लगाते हैं तो वहां उन्हें निराश होना पड़ता है।
 
हर साल फरवरी मार्च में एक बजट आता है लेकिन इस नई सरकार के बनने के बाद चालू वित्तीय वर्ष के लिए बजट पेश किया गया। अगली बार या कहें अगले वित्तीय वर्ष के लिए आम बजट समय से पेश होगा। वर्तमान सरकार के ऊपर इस समय रियायत और राहत का अत्यधिक भार है। सरकार पिछले साल ही अस्सी करोड़ लोगों को जो ग़रीबी रेखा के नीचे आते हैं उनके लिए फ्री राशन योजना को पांच साल के लिए बढ़ा चुकी है। यह कोई छोटी योजना नहीं है। इसका भार हमें अन्य मदों में कम खर्च करके सहन करना होगा। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सरकार रियायती दरों में आवास भी दे रही है। आयुष्मान भारत योजना आदि बहुत सी ऐसी सरकारी योजनाएं हैं जिनका भार पहले ही सरकार पर पड़ रहा है। किसानों के लिए भी सरकार ने बहुत सी रियायती योजनाओं की घोषणा की है। लेकिन मध्यम वर्ग हमेशा इसमें ठगा रह गया है। क्यों कि देश में सबसे ज्यादा कर अगर कोई देता है तो वह है मध्यम वर्ग। इसको हमेशा सरकार को ध्यान में रखना होगा। इंडस्ट्रीज में भी बहुत से सेक्टर ऐसे हैं जो घाटे में चलने के कारण बंद होने की कगार पर हैं। इसलिए उनको भी राहत की दरकार है। हां जो सेक्टर फायदे में हैं हम उनकी रियायतें कम कर सकते हैं। देश में बेरोज़गारी एक बहुत बड़ी समस्या है। हर साल लाखों युवा पढ़ लिख कर नौकरी के लिए तैयार हो जाता है। सरकार कहती है कि आप अपना व्यवसाय करें मदद सरकार करेगी तो बजट का एक बहुत हिस्सा इसके लिए भी रखा जाता है। लेकिन हां हमें इन रेवड़ियों को बांटने पर रोक लगानी होगी जो राजनैतिक लाभ के लिए सरकारों द्वारा बांटी जाती हैं। इस बार के बजट में कृषि क्षेत्र पर बहुत ही फोकस किया गया है। क्यों कि अन्नदाता परेशान है। कई बार किसानों ने आंदोलन किया है। हालांकि इन आंदोलनों में राजनीति ज्यादा होती है। लेकिन वास्तविकता देखी जाए तो देश का छोटा किसान परेशान है। 
 
देश के छोटे किसानों की तरफ बजट का द्वार खोलने की आवश्यकता है क्योंकि यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो पूंजीपति किसान इनको धरातल पर ला देगा। इन किसानों को कभी सूखा तो कभी अत्यधिक वर्षांत, या देर से हुई वर्षांत के कारण बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यदि इनमें से एक भी विपदा का सामना उन्हें करना पड़ गया तो उनकी पूरे साल की मेहनत बेकार हो जाती है और वह कर्ज के बोझ से लद जाते हैं। हम इस बात के पक्ष में हैं कि पूंजीपति किसानों को रियायतें नहीं मिलनी चाहिए। अगर हमें कहीं पर कुछ रियायतें देनी हैं तो कहीं कोई शख्त क़दम भी उठाने होंगे। हमने देखा है कभी-कभी सरकारें राजनैतिक कारणों से सख्त कदम नहीं उठा पातीं हैं तो वहां निश्चित ही घाटे का बजट पेश करना पड़ जाता है। सर्विस सेक्टर हमेशा आयकर के बोझ तले दबा रहता है और इतना टैक्स देता है कि उसी के सहारे सरकार अपना बजट बना पाती है। इस मध्यम वर्ग के सर्विस क्लास पर भी सरकार का ध्यान होना चाहिए। आज तीन लाख से 7 लाख की आय वाले सर्विस क्लास व्यक्ति पर 5 प्रतिशत इनकम टैक्स के दायरे में रखा गया है। इस पर अधिक रियायत देने की जरूरत है। सर्विस क्लास व्यक्ति का वेतन खुला होता है और उसको हर हाल में टैक्स देना पड़ता है जब कि वहीं व्यापारी वर्ग जो उससे अधिक भी कमाता है तो वह वास्तव में सही से टैक्स नहीं देता क्योंकि उसकी आय का ठीक से आंकलन नहीं हो पाता और वह अपनी आय को कम दर्शाता है। लेकिन सरकार इसपर ज्यादा जोर इसलिए नहीं डाल पाती क्योंकि वह इस वर्ग को नाराज़ नहीं करना चाहती। व्यापारी वर्ग जो बिक्री कर देता है वह तो जीएसटी के सीधे सीधे आम जनता से ही वसूला जाता है। इधर आम जनता मतलब सर्विस क्लास व्यक्ति इनकमटैक्स भी देता है और जीएसटी भी चुकाता है। ऐसा करना ठीक नहीं है।
 
पिछली सरकार के समय में रेल बजट अलग से रेलमंत्री पेश करते थे। लेकिन मोदी सरकार ने एक नई व्यवस्था दी तब से रेलबजट भी आम बजट के साथ ही पेश होने लगा है। जब लालू प्रसाद यादव रेलमंत्री बने थे उससे पहले रेलवे हमेशा घाटे में चला है और घाटे का बजट भी पेश होता था लेकिन लालू प्रसाद यादव ने पहली बार रेलवे को फ़ायदे में लाकर दिखा दिया। उस समय लालू यादव की काफी प्रशंसा हुई थी और उनके इस करिश्मे के कारण आईआईएम जैसे संस्थानों ने उनको इसलिए आमंत्रित किया था कि वह छात्रों देश के भविष्य को बता सकें कि ऐसा वह किस तरह से कर सके। खैर यह बात अब पुरानी हो गई है। रेलवे उससे बहुत आगे बढ़ चुका है। हम तीव्र गति की आधुनिक रेलों के संचालन पर काम कर रहे हैं। लेकिन आम जनता की पैसेंजर रेलों की स्थिति अभी वहीं की वहीं है। जितनी आबादी बढ़ी है उस हिसाब से रेल का विकास नहीं हो सका है। 80 डिब्बे की रेल वोगी में 150 आदमी ठूंस ठूंस कर भरे रहते हैं। रेलवे भारत में सबसे सस्ता और सुलभ आवागमन का साधन है। और देश की अधिकांश आबादी रेल यात्रा पर ही निर्भर है। अभी भी हम टू वे लाइन पर ही चल रहे हैं। हमने ट्रेन की संख्या में इजाफा तो किया है। लेकिन अतिरिक्त रेललाइन पर हमें अभी बहुत कुछ काम करना है। देश में बहुत से रेलमार्ग ऐसे हैं जहां पैसेंजर की संख्या अत्यधिक है। वहां हमें अतरिक्त रेल लाइन पर काम करना होगा। हां यह जरूर है कि पिछले समय में जहां सिंगल लाइन थीं वहां अधिकांश क्षेत्रों में हमने उनको डबल लाइन में परिवर्तित किया है। कुल मिलाकर यदि हमें कई जगह रियायत देनी है तो कई जगह हमें कड़े कदम भी उठाने होंगे।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 
 
 

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