संजीव-नी।

ईश्वर सब तेरी मेहरबानीl 

संजीव-नी।

 
ईश्वर सब तेरी मेहरबानीl 
 
वह दूसरों की खुशहाली से परेशान है,
दुनिया की चमक धमक से हैरान हैl 
 
खुद ने कभी ईमान का पसीना बहाया नहीं,
बिना श्रम के कोई नहीं बना धन
वान हैl 
 
धन की लिप्सा चाहत किसे नहीं होतीl
बनना पहले हमें,अच्छा इंसान हैl 
 
जग की रीत जिसने खोया उसी ने पाया है,
यही धरती पर ही दीन और ईमान हैl 
 
दूसरों की शान शौकत देख यह न सोचो,
उसका भाग्य सदैव कितना बलवान हैl 
 
जो जग में चमकता सितारा दिखता है,
सफलता के पीछे लुटा दी दिलों-जान हैl 
 
आकाश में बह रहीं बहुत गर्म हवाएं हैंl
दुआ है अमन से रहे, हमारा सारा जहान हैl 
 
चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात है,
फिर तू क्यों इसी में इतना हैरान हैl 
 
गहन अंधेरों के बाद रोशनी होती ही है संजीव,
मत हो हलकान,ईश्वर सब पर एक सा मेहरबान है। 
 
संजीव ठाकुर,

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