संजीव-नीl

संजीव-नीl

मानवीय संवेदनाओं को जिंदा रखिए, l
 
मानवीय संवेदनाओं को जिंदा रखिए, l
रिश्तो की भावनाओं को जिंदा रखिए।
 
संबंधों की नर्म ऊष्मा जिंदा रखिए, अहसासों के दर्द को जिंदा रखिए,
 
चुप्पी दफ़्न करती कोमल रिश्तों को,
लफ्जों की आकांक्षाओं को जिंदा रखिए।
 
घरों में बटवारे की खिची हैं तलवारे,
दिल के कोने में मोहब्बतों को जिंदा रखिये,
 
लालच ने लगाई सगे रिश्तों में सेंध,
बाल मन की शरारतों को जिंदा
रखिए,
 
दुष्कर हो आशाओं का सफर जिंदगी में,
साथ अनंत मां की दुआओं को रखिए.
 
गुरुर की भला क्या कीमत है जिंदगी में मित्रों,
दिलों में मासूम बच्चों को जिंदा रखिएl
 
संजीव ठाकुर,रायपुर

About The Author

Post Comment

Comment List

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel

साहित्य ज्योतिष

संजीव-नी।
संजीव-नी।
संजीव -नी।
संजीव-नी।
संजीव-नी|