संजीव-नी।।
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मुझ पर फेके गए पत्थर अपार मिलेl
मुझ पर फेके गए पत्थर अपार मिले,
फक्तियाँ,ताने सैकड़ों बन गले का हार मिले।
शौक रखता हूं भीड़ में चलने का मित्रो,
कही ठोकरे,तो कही जीत के पुष्प हार मिले।
जीवन बिता यूँ आपा धापी में ही जरा,
कही मीठे बोल तो कही कर्ण कटु प्रहार मिले।
आनंद तो जीवन में चलते जाना ही हैं
कभी कहीं जीत मिले या गहरी हार मिले।
नए नए मुखौटे लगाये रोज मिलते है लोग,
कई जिंदगी से खुश् तो कई बेजार मिले।
आओ मिलते है गले प्यार और मनुहार से,
ऐसी जिन्दगी,शाम शायद न बार बार मिले।
या फिर मीठी यादो की बारिश में भीग जाये,
चाहत है,ऐसी मधहोश निशा बार बार मिले।
संजीव ठाकुर,
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