संजीव-नी। 

कविता,

संजीव-नी। 

विश्व युद्ध की कालिमा। 
 
विश्व युद्ध की आशंका।
सिर्फ युद्ध का उन्माद,
डरा देता है अंदर तक,
दिल और दिमाग 
कांप जाते हैं,
आने वाले कल की
भयानक तस्वीर,
विभीषिका मानव को
कम्पित कर रख देती है।
क्या हम भूल गए 
नागासाकी की विभीषिका को,
अभी भी जापान में
मानव जाति कराह रही है,
अणु और परमाणु बमों की 
त्रासदाई पीड़ा और संत्रास से,
क्या हम भूल गए हिरोशिमा के विनाश को जहां मानवता रोती कराती बिलबिला रही है,
निर्दयी बम और बारूद के
निर्दयी संताप से,
मानव की कई पीढ़ियां
उसके प्रभाव को झेल रही है।
अब इजरायल पलेस्टाइन युद्ध,  यूक्रेन और रूस संघर्ष
कमजोर यूक्रेन पर हमला,
कमजोर होना निर्मल होना
क्या जीवन जीने का 
हक छीन लेती है?
लो रूस फिर
तानाशाही की ओर,
आंखों में सत्ता विस्तार 
की अंधी हवस,
मृत मानव के निर्जीव मांस 
के चाहत की बेहया पिपासा,
मानसिक हवस का तांडव,
हम वापस बर्बर युग की ओर,
अंधा और जंगल का कानून,
बेलगाम ताकतवर 
जंगल का राजा,
शर्म शर्म करो यनशाहों
आओ अपने अहंकार से
वापस मानवीय सीमाओं में,
सत्ता, राजपाट और वैभव,
ना तो तुगलक, औरंगजेब,
हिटलर और मुसोलिनी
का कभी रहा है,
ना ही तुम्हारा रहेगा,
ना खेलो हिंसा से,
हजारों बच्चों ,अबला स्त्रियों,
और वीरगति को प्राप्त सैनिकों
की आह लेकर
क्या चेहरा लेकर जाओगे 
ईश्वर के सामने।
जो सर्वशक्तिमान है,
जग का रखवाला भी है,
आ जाओ पुतिन
छोड़ो हथियार,
करो मानव जाति से प्यार।
 
संजीव ठाकुर

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