संजीवनी।

(आध्यात्मिक कविता)

संजीवनी।

संजीवनी।
 
याद आती है।
 
याद आती है जिनकी मधुर सुगंध,
समा गई सांसों और रग रग में।
 
याद आती है वह रतिया जो बस गई आंखों की मुंदी हुई मेरी पलकों में।
 
और याद आते हैं अधर सुमधुरस जिनका रस घुल गया मेरे प्राणों में।
 
याद आते हैं पद कमल कोमल
बोल रही जिनकी पदचाप मधुर।
 
चुपके चुपके एकांत में याद करता
बाट जोहता पद चिन्हों की शांत सदा।
 
खिंचे चले जाते पग पग मेरे
उन फैली बेसुध बांहों की ओर।
 
पुकारते रहे पुकारते रहे मनुहार कर,
छिपे हो कहां धारा में गगन या अनंत में।
 
तुम्हारे दरस को तरसे नयन हमारे
सामने आ जाओ सफल जीवन हो हमारा।
 
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कुवलय
संजीव-नी|
संजीव-नी।
संजीव-नी।