शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी पर मामला टला है रोक नहीं 

शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी पर मामला टला है रोक नहीं 

प्रदेश सरकार ने फिलहाल शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी के मामले में विरोध को देखते हुए फिलहाल बातचीत तक इसे रोक दिया है। परंतु ऐसा नहीं है कि यह रोक हमेशा के लिए लागू कर दी गई हो। दरअसल शिक्षकों समेत प्रदेश के तमाम कर्मचारी संगठन जब एक होने लगे और विरोध को बढ़ता देखा गया तो सरकार ने बातचीत का एक फार्मूला निकला कि शिक्षक संगठन बातचीत कर के बताएं कि आखिर डिजिटल हाजिरी में उसको क्या समस्या आ रही है। जब कि प्रदेश सरकार के अन्य कार्यालयों में यह व्यवस्था पहले से चल रही है। सरकार 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी इन शिक्षकों को नाराज़ नहीं करना चाहती है क्योंकि लोकसभा चुनाव के प्रदेश में जो नतीजे आए हैं वह भारतीय जनता पार्टी के लिए ठीक नहीं हैं।
 
लेकिन जब यह बात आगे बढ़ी तो सरकार ने यह सोचा कि क्यों न इस विषय पर पहले बातचीत कर ली जाए। और पहले भी कर्मचारी संगठनों से बातचीत के बाद कई समाधान हुए हैं और उम्मीद है कि इस पर भी चर्चा सार्थक ही होगी लेकिन तब तक के लिए तो इससे शिक्षकों को उनकी सोच के मुताबिक राहत मिल ही गई है। अब बात यह भी है जब सरकार ने तमाम कार्यालयों में यह व्यवस्था पहले से बना रखी है तो शिक्षकों की नाराज़गी पर इतना बवाल क्यों। शिक्षक क्यों बचना चाहते हैं डिजिटल हाजिरी से। दरअसल शिक्षक संगठनों ने सरकार की नब्ज़ को अच्छी तरह से पकड़ लिया है। अधिकांश कर्मचारी संगठन या व्यापारी संगठन उसी समय लामबंद होते हैं जब निकट भविष्य में चुनाव हों और सरकार ऐसी स्थिति में हो कि उसको उनकी शर्तों पर झुकना पड़े। और देश और प्रदेश में वर्तमान में यही स्थिति है क्योंकि केंद्र में अकेले भाजपा के पास बहुमत नहीं है और दूसरा उत्तर प्रदेश में जिस तरह से लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी पीछे रह गई है तो उसके लिए भी खतरे की घंटी है।
 
डिजिटल हाजिरी में शिक्षक क्या मांग रख सकते हैं या क्यों इसका विरोध कर रहे हैं। यह बात आम जनता को तो बिल्कुल समझ में नहीं आ रही है। क्यों कि सरकारी शिक्षा का हाल इस समय देश में जो चल रहा है उसके सुधार की अति आवश्यकता है। अभी दो दिन में ही मीडिया में चित्र समेत कुछ ऐसी खबरें आईं हैं जो डिजिटल हाजिरी के पक्ष में आती हैं। उस खबर में दिखाया गया है कि प्रातः नौ बजे बच्चे स्कूल के बाहर खड़े हैं लेकिन मास्टर साहब विद्यालय नहीं पहुंच पाये हैं। यह खबर चिंतनीय थी कि बच्चे तो पढ़ना चाहते हैं लेकिन शिक्षक समय पर विद्यालय में उपस्थित नहीं हो पा रहे हैं। इसका एक कारण यह ढूंढने को मिला कि।
 
सरकार शिक्षकों की नियुक्ति कहीं भी कर दे लेकिन वह हर हाल में शहरी क्षेत्र में ही रहना चाहते हैं। वह 70 किलोमीटर की यात्रा करके विद्यालय की ड्यूटी करने को तैयार हैं लेकिन शहरी क्षेत्र छोड़ने को तैयार नहीं हैं और यही मुख्य कारण है कि वह डिजिटल हाजिरी के विरोध के लिए लामबंद हुए हैं। लेकिन यह शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि छात्रों को गुणवत्ता परक शिक्षा देने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अच्छी शिक्षा दिए बग़ैर प्रधानमंत्री के 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। और इसके लिए शिक्षकों का समय पर विद्यालय पहुंचना अति आवश्यक है। और यदि इस तरह के कदम नहीं उठाए जाते हैं तो शिक्षा में सुधार की परिकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता है।
 
सरकार ने इस पर अभी शिक्षकों को एक समय दिया है और मुख्यमंत्री ने स्वयं हस्तक्षेप करते हुए डिजिटल हाजिरी की अनिवार्यता को अग्रिम आदेशों तक स्थगित किया है। साथ ही उनकी समस्याओं व सुझावों को सुनने के लिए एक विशेष कमेटी गठित करने का निर्णय लिया है। यह कमेटी शिक्षा के सभी आयामों पर विचार कर सुधार के लिए सुझाव देगी। अब सवाल यह उठता है कि शिक्षक डिजिटल हाजिरी से क्यों बचना चाहते हैं यदि वह समय से विद्यालय पहुंचते हैं तो। यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है और शायद इसका जबाब शिक्षक संघ के पदाधिकारियों के पास भी नहीं होगा। सरकार ने मज़बूरी बस इस निर्णय को फिलहाल टाला है क्योंकि कि वह कोई ऐसा निर्णय नहीं लेना चाहती जिससे कोई भी संगठन लामबंद हो और इसका असर आगामी चुनावों में पड़े।
 
हालांकि अभी 2027 के चुनावों में बहुत समय वाकी है लेकिन अभी हाल ही में प्रदेश की दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं और इसको 2027 के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। वैसे भी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी में अंदरुनी कलह खुल कर सामने आ गई है। और योगी आदित्यनाथ सरकार यह बिल्कुल भी नहीं चाहती कि किसी एक निर्णय के कारण भारतीय की स्थिति का कारण उन्हें माना जाए। हमने योगी सरकार के पिछले कई निर्णय भी देखे हैं जो बाद में हल्के पड़ गये हैं। और कुछ ऐसे भी देखे हैं कि सरकार उसपर बिल्कुल पीछे नहीं हटी है। लेकिन यदि कुछ बेहतर करना है तो उसके लिए कठिन और ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे। 
 
संगठनों के विरोधाभास के लिए सरकार के पास कई जबाब हैं जिनका प्रयोग वो कर सकती है लेकिन सरकार यह चाहती है कि कोई भी कार्य बिना किसी विरोध के हो जाए तो वह देश और सरकार दोनों के लिए अच्छा है। नहीं तो विपक्षी दल इसी तरह के संगठनों को हवा दे देते हैं जिससे सरकार की छवि खराब होती है। डिजिटल हाजिरी की जरूरत अचानक ही महसूस नहीं हुई है। इसके पीछे शिक्षकों का एक लंबा समय देश के सामने आया है। प्रदेश और देश की सरकार सभी को शिक्षित बनाना चाहती है और इसके लिए बहुत लंबा चौड़ा बजट रखा जाता है। और इतने भारी भरकम बजट रखने के बावजूद हमें उसका लाभ न मिले तो वह बेकार है।
 
शिक्षामित्रों की भर्तियां जब शुरू की गईं थीं तब इसका भी काफी विरोध हुआ था लेकिन तब उस समय की सरकार इस पर अडिग रही और आज स्थिति यह है कि वही शिक्षा मित्र उतनी ही मेहनत से बच्चों को पढ़ा रहे हैं जितना कि सरकारी शिक्षक। इससे शिक्षा के बजट में भी कम भार पड़ा है जिससे सरकार ने मिड डे मील जैसी योजनाओं को लागू किया। सरकार के हर निर्णय का विरोध नहीं हो सकता यदि कुछ परिवर्तन होते हैं तो उनके आगे पीछे के बहुत से उद्देश्य होते हैं।
 
अब जब शिक्षक संगठन सरकार के द्वारा बनाई गई समिति से वार्ता करेंगे तो इसमें कुछ छूट तो दी जा सकती है लेकिन इस डिजिटल हाजिरी को पूरी तरह से रोका या खत्म नहीं किया जा सकता है। इसको लेकर पहले ही सरकार ने अपनी मंशा को स्पष्ट कर दिया है। देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के बिगड़ते हालातों से सभी अच्छी तरह से परिचित हैं। शिक्षा स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था सरकार को हर हाल में दुरुस्त रखनी पड़ती है। इसलिए यह मामला खत्म नहीं हुआ है हां यह जरूर है कि अभी कुछ समय के लिए इस पर रोक जरुर लग गई है।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार

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