स्वतंत्र भारत में मानसिक स्वाधीनता भी अत्यंत आवश्यक? 

स्वतंत्र भारत में मानसिक स्वाधीनता भी अत्यंत आवश्यक? 

"पराधीन सपने हूं सुख नाही"यह लोकोक्ति हर स्वाभिमानी आदमी और स्वतंत्रता प्रेमी व्यक्ति को याद रहती है। स्वावलंबन या आत्मनिर्भरता ही मनुष्य को स्वाधीन बनाने की प्रेरणा देती है। आत्मनिर्भरता की स्थिति में व्यक्ति अपनी इच्छाओं को अपनी सुविधा अनुसार पूरा कर सकता है, इसके लिए दूसरों की तरफ मुंह ताकने की जरूरत नहीं पड़ती है। भारत में स्वाधीनता के मायने कितने लोग समझ पाते हैं और कितना इसका सही और सटीक प्रयोग कर पाते हैं। किसी भी राष्ट्र के लिए शिक्षा और साक्षरता का उस देश और काल को समझने का एक कारगर हथियार हो सकता है पर भारत में मानसिक स्वाधीनता को समझना भी एक बड़ी समस्या है यह अशिक्षा जनित समस्या बहुत ही विकराल है।
 
हम अभी भी पश्चिमी जगत की शिक्षा, कार्यशैली, विज्ञान एवं चिकित्सा पर संपूर्ण रूप से निर्भर हैं केवल एक शिक्षा ही ऐसा अस्त्र है जो स्वतंत्र भारत के नागरिकों को स्वाधीनता के महत्व को समझने में सक्षम होगा ।अतः स्वाधीन भारत के स्वतंत्र नागरिकों को शिक्षा के माध्यम से शारीरिक एवं मानसिक स्वतंत्र नागरिक बनाकर देश के प्रति सजग और सचेत किया जा सकता है। आत्मनिर्भरता केवल मनुष्य के लिए व्यक्तिगत रूप से ही जरूरी नहीं है, बल्कि राष्ट्र के लिए भी अति आवश्यक है ।एक स्वतंत्र राष्ट्र अपनी जनता को अपनी क्षमता के अनुसार सारी सुविधाएं तथा अन्य जीवन उपयोगी साधन उपलब्ध करा सकता है।
 
भारत स्वतंत्रता के बाद हरित क्रांति सातवें दशक के प्रारंभ के बाद ही खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन सका, इसके साथ ही भारत में खुशहाली की स्वाभाविक तौर पर वृद्धि हुई, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी कहा था कि "एक राष्ट्र की शक्ति उसकी आत्मनिर्भरता में है दूसरों से उधार लेकर काम चलाने में नहीं",पाकिस्तान की स्थिति बिल्कुल ऐसी ही है वह अभी तक स्वतंत्रता के बाद से 78 वर्ष के बाद भी संपूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है, वह कर्जे से डूब गया है और अपने देश में खर्चा चलाने के लिए पूरी दुनिया से उधार मांगते हुए घूम रहा है। पाकिस्तान आत्मनिर्भर नहीं होने का एवं उधार की जिंदगी जीने का एक बहुत बड़ा उदाहरण है। जबकि भारत देश विज्ञान, टेक्नोलॉजी, मेडिकल साइंस,इंजीनियरिंग और कृषि सेवा, खनिज,स्पेस रिसर्च में पूर्णता आत्मनिर्भर होकर विकसित देशों के बराबर खड़ा हुआ है।
 
यह देशवासियों और देश के लिए अत्यंत गौरव का विषय है। आत्मनिर्भरता या स्वावलंबन किसी भी देश की प्रगति विकास तथा और उसके नागरिकों की जिंदगी की जिजीविषा है जिससे वह संघर्ष कर आगे बढ़ता है। इतिहास गवाह है कि किसी भी महान लेखक को महान बनने तक निरंतर मेहनत कर किताबें लिखने का का श्रम करना पड़ा एवं आत्मनिर्भरता की स्थिति में विचार कर अपने विचारों को लिपिबद्ध करना पड़ा तब जाकर वह महानता की श्रेणी को प्राप्त कर सका। इसी तरह कोई छात्र अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है तो उसे स्वयं परीक्षा में शामिल होना पड़ेगा एवं परीक्षा में मनोवांछित सफलता प्राप्त कर उसे स्वयं अध्ययन करना होगा। इसी प्रकार जीवन के हर क्षेत्र में भी मनुष्य को आत्मनिर्भर होकर मेहनत कर दीक्षित सफलता प्राप्त करनी पड़ेगी।
 
हमारा देश भारत भी आजादी के बाद से आत्मनिर्भरता की ओर अग्रेषित हुआ आज स्थिति यह है कि वह विश्व में विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है। तमाम महापुरुषों के जीवन से भी हमें आत्मनिर्भरता तथा स्वावलंबन की शिक्षा मिलती रहती है।महात्मा गांधी अपना कार्य स्वयं किया करते थे। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी "दैव दैव आलसी" पुकारा है, तब जाकर उनकी जिंदगी पटरी पर आई और हमें परिश्रम कर आत्म निर्भर होने की शिक्षा प्रदान की थी। दूसरों पर निर्भरता हमें दूसरों का अनुसरण करने के लिए मजबूर करती है। दूसरों पर निर्भर होने से हमें के अनुरूप ही जीवन जीने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
 
पराधीनता हमारा आत्मविश्वास सृजनशीलता सोचने की शक्ति को नष्ट कर देती है। गुलामी एक अभिशाप होती है, आत्मनिर्भरता की कमी हमें किंकर्तव्यविमूढ़ बना देती है। दूसरों की कृपा पर जीने वाला व्यक्ति जीवन के अक्षय आनंद से वंचित रहता है। खुद के परिश्रम श्रम से आगे बढ़ने वाला देश या व्यक्ति या समाज सदैव प्रफुल्लित आत्म विश्वासी तथा विकास की ओर सदैव अग्रसर रहता है। हमें सदैव अपने अंदर के आत्मविश्वास, छिपी हुई क्षमताओं मनोबल का सहारा लेकर आत्मनिर्भर या स्वावलंबी बनने का प्रयास हमेशा करते रहना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य को मनुष्य होने का अधिकार प्राप्त होता है। पराधीन देश सामान्य व्यक्ति सदैव पशु तुल्य होते हैं। जिनका अपना कोई विचार या व्यक्तित्व नहीं हो सकता है। कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता -राम सहायक उनके होते, जो होते हैं, आप सहायक, हम सबको स्वयं पर भरोसा रखना आत्मबल बढ़ाने तथा आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा देती रहती हैं।
संजीव ठाकुर

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