भारतीय जनता पार्टी में गुटबाजी और बयान बाजी को दरकिनार करते हुए उत्तर प्रदेश में होने वाले दस विधानसभा के लिए उप चुनाव इतना महत्वपूर्ण हो गया है कि शायद इतनी गंभीरता से भाजपा ने लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ा होगा। इस उपचुनाव के कई मायने निकाले जा रहे हैं। एक तो यह 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की दिशा तय कर देंगे दूसरा प्रदेश सरकार की नीतियों और निर्णयों क भी आंकलन हो जाएगा। क्यों कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी में जिस तरह से गुटबाजी और बयान बाजी हो रही है उससे पार्टी की और फजीहत हो रही है। और इसी लिए हर समय चर्चा में रहने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को दिल्ली तलब किया गया था। और जब केशव प्रसाद मौर्या दिल्ली में थे तब लखनऊ में मुख्यमंत्री कैबिनेट मीटिंग ले रहे थे। हालांकि केशव प्रसाद मौर्या लखनऊ लौट आए हैं लेकिन उनको क्या आश्वासन मिला है यह अंदर की बात है। इधर मुख्यमंत्री की कैबिनेट मीटिंग में दोनों उपमुख्यमंत्री उपस्थित नहीं थे। और न ही योगी आदित्यनाथ द्वारा उपचुनाव के लिए दोनों उप मुख्यमंत्रियों को कोई उपचुनाव को लेकर कोई प्रभार सौंपा गया है। केशव प्रसाद मौर्या को जो भी दिशा-निर्देश मिलें हैं वह दिल्ली आलाकमान से ही मिले हैं। इसका मतलब साफ है कि उत्तर प्रदेश में एक धड़ा मुख्यमंत्री के निर्देशन में काम कर रहा है तो दूसरा धड़ा दिल्ली संगठन के कहने पर। और शायद इसी लिए केशव प्रसाद मौर्या ने कहा था कि सरकार से बड़ा संगठन होता है। दिखाई भी यही रहा है कि केशव प्रसाद मौर्या को जो भी डायरेक्शन मिल रहे हैं वह केंद्र से ही मिल रहे हैं। फिलहाल शायद उनको यही बोला गया है कि अभी सारे मतभेद छोड़ कर उप चुनाव की तैयारी में जुट जाएं। क्यों कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में पिछड़ी भारतीय जनता पार्टी के लिए यह उपचुनाव बहुत ही मायने रखते हैं। इस उपचुनाव में वह हर संभव कोशिश कर रही है कि उसके प्रदर्शन में सुधार हो।
उत्तर प्रदेश की जिन दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें से पांच पर समाजवादी पार्टी के विधायक थे जब कि पांच सीटों पर एनडीए गठबंधन के विधायक थे। भारतीय जनता पार्टी की कोशिश है कि दस में से ज्यादा से ज्यादा सीटों पर उसे विजय प्राप्त हो जिससे के उत्तर प्रदेश की जनता के बीच भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में एक अच्छा संदेश पहुंचाया जा सके कि लोकसभा चुनाव में वह भले ही पीछे रह गई लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए वह पूरी तैयारी में हैं। दिल्ली से लौटने के बाद केशव प्रसाद मौर्या शायद अब कोई सरकार विरोधी बयानबाज़ी नहीं करेंगे। क्यों कि अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी और केशव प्रसाद मौर्या के ऊपर जो तंज कसा था उसका जबाब केशव प्रसाद मौर्या ने अखिलेश यादव को दे दिया है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकारें केन्द्र और राज्य दोनों में मजबूत स्थिति में हैं और वह यह भूल जाएं कि समाजवादी पार्टी की सरकार दुबारा सत्ता में आयेगी। भारतीय जनता पार्टी ने आगामी उपचुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी के विरोध में एक फार्मूला सैट किया है और उसी के प्रचार-प्रसार के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को जुट जाने के लिए कहा गया है। लखनऊ की कैबिनेट मीटिंग में इस बात पर जोर दिया गया कि वह जनता के बीच जाकर अखिलेश यादव सरकार के समय के गुंडाराज को जनता को याद दिलाएं और उसी का प्रचार-प्रसार करें। लेकिन अब यह देखने वाली बात होगी कि लोकसभा चुनाव में जिस तरह उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सीटें घटी हैं वह केंद्र सरकार की कमी से घटी हैं या उत्तर प्रदेश सरकार की। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने एक और बात खोजी है वह है कार्यकर्ताओं की नाराज़गी। क्यों कि प्रदेश के अफसरों ने भाजपा कार्यकर्ताओं की नहीं सुनी है और इसी लिए भाजपा कार्यकर्ता नाराज थे और वो घरों से नहीं निकले जिसका खामियाजा लोकसभा चुनाव में पार्टी को भुगतना पड़ा। अब उपचुनाव के लिए जो प्रभारियों की नियुक्ति की गई है उनसे यही कहा गया है कि सभी प्रभारी अपने अपने क्षेत्रों में जाकर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की नाराज़गी को दूर करें।
यह उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दस उपचुनाव की सीटों के लिए पार्टी ने 30 मंत्रियों को प्रभारी बनाया है। मतलब एक औसत के अनुसार एक विधानसभा क्षेत्र के लिए 3 प्रभारी मंत्री तय किए गए हैं। विधानसभा उपचुनाव मुजफ्फरनगर की मीरापुर, संभल की कुंदरकी, गाजियाबाद सदर, अलीगढ़ की खैर, मैनपुरी की करहल, कानपुर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, अयोध्या की मिल्कीपुर, अंबेडकरनगर की कटेहरी और मिर्जापुर की मझवा सीट के लिए होना है। इनके लिए जो प्रभारी बनाए गए हैं उनमें मीरापुर के लिए कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार राज्यमंत्री सोमेन्द्र तोमर और केपी मलिक, कुंदरकी के लिए कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह तथा राज्य मंत्री जेपीएस राठौर, गुलाब देवी और जसवंत सैनी, गाजियाबाद सदर के लिए कैबिनेट मंत्री सुनील शर्मा राज्यमंत्री कपिल देव, ब्रजेश सिंह और सुनील शर्मा, खैर के लिए कैबिनेट मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी राज्यमंत्री संदीप सिंह पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पौत्र संदीप सिंह, करहल के लिए कैबिनेट मंत्री जयवीर सिंह व योगेन्द्र उपाध्याय तथा राज्य मंत्री अजीत पाल सिंह, सीसामऊ सीट के लिए कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना तथा राज्य मंत्री नितिन अग्रवाल, फूलपुर के लिए कैबिनेट मंत्री राकेश सचान राज्यमंत्री दया शंकर सिंह, मिल्कीपुर के लिए कैबिनेट मंत्री सूर्य प्रताप शाही राज्यमंत्री राज्यमंत्री गिरीश यादव,मंयकेश्वर सिंह,व सतीश शर्मा, कटेहरी के लिए कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह व संजय निषाद राज्यमंत्री दया शंकर सिंह, मझवा के लिए कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर आशीष पटेल राज्यमंत्री रवीन्द्र जायसवाल व रामकेष निषाद शामिल हैं। कहने का मतलब इस उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपनी पूरी ताकत झोंक दे रहे है जब कि उप चुनाव को कोई भी पार्टी इतनी गंभीरता से नहीं लेती है लेकिन इस उपचुनाव को उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है। इतनी लंबी चौड़ी मंत्रियों की लिस्ट भाजपा की चिंता को उजागर कर रही है।
लखनऊ की कैबिनेट मीटिंग में कुछ फैसले ऐसे भी लिए गए जिनको जनता और कर्मचारियों से जोड़ कर देखा जा रहा था। जनता और शिक्षकों में इससे रोष व्याप्त था। या विपक्ष द्वारा कुछ ऐसा भ्रम फैला दिया गया था जिसमें जनता सरकार से नाराज़ थी। सबसे पहला फैसला जो योगी आदित्यनाथ सरकार ने लिया वह यह था कि अभी हाल फिलहाल शिक्षकों को डिजिटल हाजिरी नहीं देनी होगी जब तक कि सरकार के प्रतिनिधि मंडल और शिक्षकों के प्रतिनिधि मंडल के बीच वार्ता के बाद कोई ठोस निर्णय नहीं निकले। इसको लेकर शिक्षकों में बहुत रोष व्याप्त था। दूसरा यह कि बुल्डोजर का प्रयोग केवल अवैध गतिविधियों पर ही होगा। क्यों कि बुल्डोजर को लेकर विपक्ष ने सरकार के ऊपर एक ग़लत संदेश जनता के बीच डाल दिया गया था। लखनऊ में कुकरैल नदी के किनारे केवल अवैध निर्माण ही हटाए जाएंगे। जब कि नगर निगम और एलडीए के अधिकारी कुछ ऐसे मकानों पर भी लाल चिन्ह लगा आए थे जो वैध थे। सरकार ने बहुत कुछ अपने ऐसे निर्णयों को स्पष्ट किया है जिनको लेकर जनता में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। यह सब निर्णय उपचुनाव को देखकर ही लिए गए हैं। दिल्ली से केशव प्रसाद मौर्या से ऐसी उम्मीद लगाई जा रही है कि शायद उपचुनाव तक वह इस तरह के स्टेटमेंट से बचेंगे जो सरकार के विरोध में जाते हों। समाजवादी पार्टी भी उपचुनाव में दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है।
लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखते हुए सपा के हौसले बुलंद हैं। लेकिन उनको यह देखना होगा कि बहुजन समाज पार्टी इस चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रही है। यदि बहुजन समाज पार्टी ने इस चुनाव को वास्तव में गंभीरता से लड़ा तो सपा के लिए यह नुकसान दायक हो सकता है। और इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है। तलवार सभी की फंसी हुई है देखना यह है कि समय पर कौन इसका स्तेमाल सही तरीके से कर सकता है। बहुजन समाज पार्टी ने कभी भी उपचुनाव को गंभीरता से नहीं लिया है। लेकिन इस बार बहुजन समाज पार्टी की स्तिथि काफी लचर है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में उसका केवल एक सदस्य है और लोकसभा में वह शून्य हो गई है। भारतीय गठबंधन के पास इनमें से जितनी विधानसभा सीटें थीं उनसे बढ़कर वह जीतने की कोशिश कर रही है। लेकिन अब इसमें वह कितनी सफल हो पाएगी यह वक्त पर ही पता चल सकेगा।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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