बाल यौन शोषण सभ्य समाज पर कलंक 

बाल यौन शोषण सभ्य समाज पर कलंक 

बाल यौन शोषण हमारे समाज के लिए अभिशाप है। आमतौर पर देखा गया है बच्चों का यौन शोषण करने वाले उनके करीब के ही होते है। समाज में इस तरह के गुनाहों के शिकार बच्चों के माता पिता लोकलाज के डर से इन घटनाओं को छुपा लेते हैं। ज्यादातर देखा गया है कि इन घटानाओं को अंजाम देने वाले उन बच्चों के आसपास रहने वाले आम समाज में उठने बैठने वाले लोग या उनके रिश्तेदार ही होते हैं। इस तरह के हादसों के बाद रिश्ते तो टूटते ही है पर कई बार पूरी बात की जानकारी ना होने के समाज पीडित पक्ष को ही दोषी बताने लगता है पर उन बातों की असलियत कुछ और होती है।
 
कुछ दिन पहले ऐसी ही एक घटना की जानकारी किसी ने मुझे दी। उस घटना में एक बहन ने अपने भाई पर  पुश्तैनी जायदाद पाने के लिए केस कर दिया। समाज उस औरत को लालची बताने लगा परन्तु इन सब के पीछे असलियत कुछ और थी। असल में उस औरत का भाई उसके बेटे को अपने कमरे में बुलाता था, उसके यौन अंग को छेड़ता और प्यार करता था। जब तक तो वो लडका छोटा था उसने उस व्यक्ति के डर से यह बात किसी को नही बताई पर जब वो लडका बड़ा हुआ और कमरे में जाने से इंकार करने लगा तब मां और नानी के पूछने पर उसने सारी बात का खुलासा किया।
 
उसकी मां ने पाॅक्सो एक्ट में मुकदमा कराना चाहा तब समाज में बदनामी के डर से बच्चे की नानी के कहने पर उस औरत ने केस नही किया परन्तु अपने भाई से रिश्ते खत्म कर लिए। ऐसी बहुत सी घटनाए हैं जो कभी सामने नही आती और गुनाहगार खुलेआम घुमता रहता है। समाज के लिए अभिशाप बाल यौन शोषण के अधिकांश मामलों में आरोपित लोग बच्चे के करीबी ही होते हैं। बाल यौन शोषण की घटनाएं कई बार सामने आ जाती हैं लेकिन कई बार ये घटनाएं सामने नहीं आतीं और अगर आती भी हैं तो परिवार के लोग इज्जत के नाम पर ऐसी घटनाओं को दबा देते हैं या भय के साये में आरोपित के खिलाफ शिकायत नहीं देते।
 
इससे आरोपी का मनोबल बढ़ता है और भविष्य में उसे ऐसी और घटनाए करने का बल मिलता है। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता समाज और इज्जत के नाम पर डरने के बजाय आरोपित व्यक्ति को नंगा कर कठघरे में खड़ा करें ताकि ऐसी घटिया मानसिकता वाले दूसरे लोगों को भी सबक मिले। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों के शोषण एवं ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन बनाने की घोषणा की थी।
 
मंत्रालय का उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी व्यापक प्रणाली का विकास करना है, जिसमें बच्चों के माता-पिता, स्कूलों, समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों, स्थानीय सरकारों के साथ-साथ पुलिस व वकीलों को भी शामिल किया जाना है। ऐसी व्यापक प्रणाली की आवश्यकता इसलिये है ताकि बच्चों की सुरक्षा एवं अधिकार के संबंध में निर्मित सभी वैधानिक नियामकों, नीतियों, राष्ट्रीय रणनीतियों एवं मानकों के सटीक क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना संभव हो सके। बच्चों के साथ शारीरिक, मानसिक, यौनिक अथवा भावनात्मक स्तर पर किया जाने वाला दुर्व्यवहार बाल दुर्व्यवहार कहलाता है।
 
हालाँकि हम बाल दुर्व्यवहार में सामान्यतः यौनिक एवं शारीरिक शोषण को ही शोषण समझाते हैं, जबकि मानसिक तथा भावनात्मक स्तर पर होने वाला शोषण भी बच्चों के मानस पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है। बाल यौन शोषण का दायरा केवल बलात्कार या गंभीर यौन आघात तक ही सिमटा नहीं है बल्कि बच्चों को इरादतन यौनिक कृत्य दिखाना, अनुचित कामुक बातें करना, गलत तरीके से छूना, जबरन यौन कृत्य के लिये मजबूर करना, भोलेपन का फायदा उठाने के लिये चॉकलेट, पैसे आदि का प्रलोभन देना चाइल्ड पोर्नोग्राफी बनाना आदि बाल यौन शोषण के अंतर्गत आते हैं।
 
बच्चे न तो मजबूत प्रतिरोध कर पाते हैं और न हीं उनमें यौन चेतना का विकास होता है। जिससे वे ऐसे अपराधियों के लिये सॉफ्ट टारगेट्स बन जाते हैं। ऐसे अपराधी मानसिक रोगी होते हैं। ऐसे व्यक्ति लड़के एवं लड़कियाँ दोनों निशाना बनते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 18 वर्ष से कम उम्र के 7.9 प्रतिशत लड़के एवं 19.7 प्रतिशत लड़कियाँ यौन हिंसा की शिकार हैं। बाल अधिकारों की रक्षा के लिये संयुक्त राष्ट्र का बाल अधिकार कन्वेंशन (सीआरसी) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो सदस्य देशों को कानूनी रूप से बाल अधिकारों की रक्षा के लिये बाध्य करता है।
 
भारत में बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार के खि़लाफ सबसे प्रमुख कानून 2012 में पारित यौन अपराध के खि़लाफ बच्चों का संरक्षण कानून पाॅक्सो है। इसमें अपराधों को चिह्नित कर उनके लिये सख्त सजा निर्धारित की गई है। साथ ही त्वरित सुनवाई के लिये स्पेशल कोर्ट का भी प्रावधान है। यह कानून बाल यौन शोषण के इरादों को भी अपराध के रूप में चिह्नित करता है तथा ऐसे किसी अपराध के संदर्भ में पुलिस, मीडिया एवं डॉक्टर को भी दिशानिर्देश देता है। वैसे तो भारत में बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार के खि़लाफ व्यापक कानूनी ढाँचा है। कितु इतने कानूनों एवं योजनाओं के बावजूद इनकी तकनीकी चूक तथा इनके कार्यान्वयन में अनियमितता, त्वरित कार्रवाई न होने के कारण ये घटनाएँ होती हैं।
 
इसके लिये जरूरी है सजगता एवं जागरूकता। ऐसे में जरूरी है कि प्राथमिक स्तर पर घर-परिवार, माता-पिता एवं परिजन बच्चों से मिलने वालों एवं उनके साथ खेलने वालों के प्रति सजग रहे वहीं बच्चों को भी असामान्य व्यवहार के प्रति सजग रहने के लिये प्रेरित करना चाहिये। स्कूलों में जहाँ अनिवार्य मनोवैज्ञानिक कैंप होने चाहिये, तो वहीं डॉक्टर, मीडिया व पुलिस को भी इन घटनाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिये। ऐसे अपराधी बच्चों को आकर्षित करने और उन्हें अपने पास बुलाने के लिए नए-नए बच्चों को देते हैं। मा बाप को चाहिए कि ऐसे व्यक्तियों को पहचाने और बच्चों को उन से दूर रखें।
 
 (नीरज शर्मा'भरथल') 

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