संजीव-नी|

उजालों में जो दूर से लुभाते हैं|

संजीव-नी|

उजालों में जो दूर से लुभाते हैं|
 
उजालों में जो दूर से लुभाते हैं,
रात को वो ही ख़्वाबों में आते हैं |
 
कोई कतई मज़बूरी नहीं आदत है,
हम तो सदैव ग़मों में भी मुस्कुरातें हैं|
 
तेरा तसव्वुर पानें को हम,
तेरे ख्यालों में डूब जातें हैं|
 
बेवफाई जो संग हो जिसके,
रातों के ख्वाब भी टूट जातें हैं|
 
नाकाम इश्क की बात हो जब,
लोग अक्सर मेरा नाम बताते हैं|
 
हमें हमेशा ऐसे लोग मिले संजीव,
दिन में भी हमेशा दिये जलातें हैं|
 
संजीव ठाकुर

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