संजीव-नी। 

कविता,

संजीव-नी। 

इतनी बे-असर दुआएं क्यों हैं। ? 
 
इतनी खामोश हवाएं क्यों है, 
इतनी गमगीन फिजाएं क्यों है। 
 
बीमार ए-दिल में बे-असर दवाएं
अब इतनी बे-असर दुआएं क्यों हैं। 
 
दर्द हमारा तो ला- इलाज है,
बे-असर इतनी दवाएं क्यों हैं । 
 
नजरें बता गई बेरुखी का सबक,
आंखों में ढेर लाल अंगारे क्यों हैं। 
 
अब तो इंतजार की इन्तेहाँ हो गई
यादों के ये गमगीन इशारे क्यों हैं। 
 
लोरियां सो गई दर्द बयां करते संजीव,
आसुओं के जुगनू इतने बेचारे क्यों हैं। 
 
उम्मीद पर ही कायम है दुनिया संजीव
गहन अंधेरे के बाद सूर्य रोशन जो है। 
 
संजीव ठाकुर, 

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